Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 333
________________ (शान्तिसिन्धु ) पुद्गल है | इसलिए द्रव्यपरावर्तनका अर्थ पुद्गलपरावर्तन होता है । यों तो पुद्गलोंके अनेक भेद हैं, परंतु जिन पुद्गलोंसे जीवका संबंध है उन्हीं पुद्गलोंको यहांपर ग्रहण करते हैं। ऐसे जीवसे संबंधित होनेवाले पुद्गलकर्म और नोकर्मके भेदसे दो प्रकार हैं। अतएव द्रव्यपरिवर्तने के भी नो कर्मद्रव्यपरिवर्तन और कर्मपरिवर्तन ऐसे दो भेद हो जाते हैं । औदारिक, वैऋियिक, और आहारक, इन तीन शरीर और छह पर्याप्तियोंके योग्य पुद्गल वर्गणाओंको नोकर्मवगेणा कहते हैं, और आठ कर्मो के योग्य पुद्गल वर्गणाओंको कर्मवगंणा कहते हैं । इन्ही के परिवर्तनको नोकद्रव्यपरिवर्तन और कर्मद्रव्यपरिवर्तन कहते हैं । यह जीव प्रतिसमय कर्म वा नोकर्म वर्गणाओंको ग्रहण करता रहता है । मान लो कि किसी जीवने एक समय में नोकर्म वर्गणा ग्रहण की। वे नोकर्म वर्गणाए अपने समयानुसार निर्जीण हो गई। फिर दूसरे तीसरे आदि समय में अन्य - अन्य नोकवर्गणाएं ग्रहण की, वे इस परिवर्तन में शामिल नहीं होती । जब कभी पहले समय में ग्रहण की हुई वर्गणाएं उतनी ही संख्याको लिए तथा उतनाही स्निग्ध, रूक्ष, वर्ण, गंधको लिए तथा उतनाही तीव्र, मध्यम, वा मन्द, परिणामको लिए जब यह जीव दुबारा ग्रहण करता है, और इसप्रकार ग्रहण करते करते समस्त तीन शरीर छह पर्याप्त योग्य समस्त नोकर्मवर्गणाओंको दुबारा ग्रहण कर लेता है, तब तक नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन होता है | मध्यके अपरिमित समय में एक जीवने जो अनन्त अग्रहीत वर्गणा ग्रहण की, अनन्त मध्य ग्रहीत वर्गणाएं ग्रहण की, और अनन्त मिश्र वर्गणाएं की, परन्तु वे सब गिनती में नहीं आती । इप्रकार अत्यंत संक्षेपसे नोकर्म द्रव्यपरिवर्तनका स्वरूप है । I ३३२ कर्म आठ हैं, उनमेंसे मानलो कि किसी जीवने किसी समय में ज्ञानावरण कर्मके योग्य पुद्गल वर्गणा ग्रहण की, और ये द्वितीय, तृतीय आदि किसी भी समय में जाकर निजोर्ण हो गई। फिर दूसरे समय में ज्ञानावरणकर्म केही योग्य अन्य वर्गणाएं ग्रहण की और वे भी समयानुसार निर्जीर्ण हो गई । इसीप्रकार तीसरे, चौथे आदि समयोंमें ज्ञानावरणके योग्य पुद्गल वर्गणाणोंको ग्रहण करता रहा। जब कभी किसी समय में पहले जो ज्ञानावरणके योग्य पुद्गल वर्गेणाएं ग्रहण की थी, वे हीं पुद्गल वर्गणाएं उतनीही संख्याकोलिए उतनेही स्निग्ध, रूक्ष, वर्गकी गंधको

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