Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 347
________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) परम शांति मुनियोंकी माता है । समस्त मोहका त्याग कर, परम शांति प्राप्त हो जानेपरही मुनिदीक्षा धारण की जाती है । जिस प्रकार माता संतानको उत्पन्न करती है । उसी प्रकार मोहके त्यागसे उत्पन्न होनेवाली परम शांति दीक्षा धारण कराकर मुनियोंको उत्पन्न करती है । इसीलिए यह परम शांति मुनियोंकी माता कहलाती है । ऐसी परम शांति प्राप्त कर, तथा दीक्षा धारण कर, मुनि बनना चाहिए, और फिर अपने आत्माके श-द्ध स्वरूपका चितवन कर मोक्ष प्राप्त कर लेना चाहिए। यही भव्यजीवका कर्तव्य है । प्रश्न- किमर्थं पाठशालादिः स्थाप्यते वद में प्रभो ? अर्थ- हे स्वामिन ! अब कृपाकर यह बतलाइये कि पाठशाला, विद्यालय आदिकी स्थापन किस लिये किया जाता है ? उ.-विद्यालयोऽज्ञानविनाशकश्च ह्यनाश्रितानां स्थितिवृद्धिहेतोः सुखप्रदः स्थाप्यत एव कोशो धैर्य तथा वीयत एव तेभ्यः ।। निरुध्यते दुष्टनृपस्य नीतिः भाषा समंतः क्रियते च मिष्टा । यथार्थशान्त्यै बहुना वटो कि धर्मानुकूला विविधा क्रियापि ॥ अर्थ- हे वत्स ! इस संसारमें परमशांति प्राप्त करनेके लिए अज्ञानका नाश करनेवाले विद्यालयोंको स्थापन किया जाता है. आश्रयरहित लोगोंको सुख देनेवाले कोशका स्थापन किया जाता हैं, उन लोगोंको धैर्य दिया जाता है, राजाकी दुष्ट नीतीमें रुकावट की जाती है, सबके साथ मीठी वाणी बोली जाती है, और यथार्थ शांतिके लिएही अनेक प्रकारकी धर्मानुकूल क्रियाए की जाती है। भावार्थ- आत्मज्ञान के बिना अन्य जितने ज्ञान हैं वे सब अज्ञान वा मिथ्याज्ञान कहलाते हैं। ऐसे मिथ्याज्ञान वा अज्ञानको दूर करनेके लिए अर्थात् आत्माके यथार्थ ज्ञान की वृद्धि के लिए, विद्यालय स्थापन किए जाते हैं । उन विद्यालयोंमें आर्ष ग्रंथोंका अध्ययन करके विद्यार्थी लोग अपने आत्माके स्वरूपको पहचान लेते हैं, और फिर उसके शुद्ध स्वरूपको उपादेय समझकर, उसको ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं, और कषायोंका त्याग करके परम शांति प्राप्त कर लेते हैं । यही विद्यालयोंके स्थापन करने का फल है । विद्यालयोंमें आत्मज्ञानकी शिक्षा नहीं

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