Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 354
________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) ३५३ करता है, इसलिए धर्मदिवाकर कहलाता है। दिवाकर शब्दका अर्थ सूर्य है, जो धर्मको प्रकाशित करनेके लिए सूर्यके समान हो, उसको धर्मदिवाकर कहते हैं । ऐसे उस आत्माकी सेवा पूजा करनेसे अनेक जीव इस संसारसे पार हो जाते हैं, इसीलिए यह आत्मा भवपारकर्ता कहलाता है। कषायोंका सर्वथा नष्ट होनेसे शान्त वा क्षमा धारण करनेवाला कहलाता है, सर्वोत्कृष्ट होने के कारण महात्मा कहा जाता है, पापकर्मोंसे रहित वा निर्मल होने के कारण परम प्रसन्न माना जाता है, ऐसे आत्मासे सब जीवोंका कल्याण होता है, इसलिए क्षेमी वा क्षेमपति माना जाता है, कोको नष्ट करनमें समर्थ होनेके कारण क्षम दा समर्थ कहलाता है, और इंद्रियोंका दमन करनेके कारण दमोश वा इंद्रियोंका दमन करनेवाला कहलाता है । इंद्रादिकोंका स्वामी होने के कारण स्वामी कहलाता है, दोषोंसे वा कर्मोंसे रहित होनेके कारण अलेप कहलाता है, समस्त कर्माका नाश करने के कारण कर्मों को जीतनेवाला माना जाता है, समस्त इच्छाओंसे रहित होने के कारण गतस्पह बा इच्छारहित कहलाता है, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होने के कारण विश्व. विलोचन कहलाता है, समस्त कर्ममलकलंकसे रहित होने के कारण तथा मोक्षमें विराजमान होनेके वारण विविक्त कहलाता है, वीतराग और परिग्रहसे सर्वथा रहित होने के कारण विरत और निसंग कहलाता है, अनंतचतुष्टय प्राप्त कर लेने के कारण, कृती और गुणज्ञ कहलाता है, और समस्त दोषोंसे रहित होने कारण, बढापा रहित तथा शोकरहित कहलाता है । इस प्रकार श्रेष्ट गुणोंको धारण करनेवाला यह मेरा आत्मा है । आगे अपने आत्माका स्वरूप और भी बतलाते हैंवाचस्पतिस्तीर्थशिरोमणिश्च प्रमोहहंता करुणापतिर्वा । दयापताकः परमप्रमोदी मनोनिरोधी मदनप्रणाशी ॥ ५०७॥ स्वयंप्रभुविश्वविकाशहेतुः सुधर्मसारोऽखिलदीनबन्धुः । शास्ता प्रणेता सुखशान्तिभर्ता स्वराज्यकर्तास्मि निजे निवासी। ____ अर्थ- यह मेरा आत्मा वाचस्पति वा सर्वोत्कृष्ट वक्ता है, समस्त तीर्थोका शिरोमणि है, मोहको नाश करनेवाला है, करुणाका स्वामी है. दयाकी ध्वजको धारण करनेवाला है, परमानंदस्वरूप है, मनका विरोध

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