Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधासिन्धु )
कहलाता है । समवसरणमें विराजमान यह आत्मा तीनों लोककी लक्ष्मीका स्वामी कहलाता है, तथा लोक-अलोक सबको जाननेके कारण ज्ञाननिधि कहलाता है । राग-द्वेष आदि समस्त दोषोंसे रहित होने के कारण वीतराग बाहलाता है । तीनों लोकोंको जीतनेवाला मोह, और मोहको भी जीतनेवाला यह आत्मा है, इसलिए यही आत्मा जगज्जयी कहलाता है। पापोंके समस्त भंडारको नाश करने के कारण कल्मषकोशहर्ता कहलाता है । समस्त जीवोंका हित करनेबाला और धर्मका स्वामी कहलाता है। परौदारिक शरीर धारण करने के कारण निरामय कहलाता है। कर्मोसे रहित होनेके कारण निष्कलंक कहलाता है, अत्यंत शांत है। पापोंसे रहित है, मद-मतारता आदिसे रहित है, सनिकृष्ट है, व्यक्त होनेपर भी किसीको दिखाई नहीं देता, तथापि पूज्य और महान कहलाता है। ऐसा यह मेरा आत्मा सदाकाल चितवन करने योग्य है ।
आगे और भी कहते हैंमहोदयो धर्मदिवाकरोहं यथार्थदृष्ट्या भवपारकर्ता । क्षान्तो महात्मा परमप्रसन्नः क्षेमीः क्षमः क्षेमपतिवमीशः॥५०५।। स्वामी झलेपो जितकर्मकाण्डो गतस्पहो विश्वविलोचनोस्मि । सदा विविक्तो विरतो विसंगः कृती गुणज्ञो विजरो विशोकः ॥
___ अर्थ- मेरा यह आत्मा महान् उदयको करनेवाला है, धर्मका दिवाकर है, यथार्थ दुष्टिसे संसारसे पार करनेवाला है, क्षमा धारण करनेवाला है, महात्मा है, अत्यंत प्रसन्न है, कल्याण करनेवाला है, समर्थ है, कल्याण करनेवालोंमें शिरोमणि है, इंद्रियदमन करनेवालोंमें शिरोमणि है, स्वामी है, कमलकलंकसे रहित हैं, कर्मोके समूहको जीतनेवाला है, स्पृहा वा इच्छाओंसे सर्वथा रहित है, तीनों लोकोंको देखनेवाला नेत्र है, भकेला है, विरक्त है, परिग्रह रहित है, कृतार्थ है, गुणोंको जाननेवाला है, बुढापा रहित है, और शोक रहित है।
भावार्थ- जिस समय यह आत्मा वातिया कर्मोको नष्ट करके केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है, उस समय समस्त इन्द्रादिकदेवभी आकर उसकी सेवा करते हैं। इसीलिए यह आत्मा महोदय कहलाता है । उस समय यह सर्वत्र आत्मा धर्मका उपदेश देकर संसारका कल्याण