Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 335
________________ ३३४ { शान्तिसुधासिन्धु ) ___ अब कालपरिवर्तनका स्वरूप कहते हैं। कोई जीव उत्सपिणीकालके पहलेसमयमें उत्पन्न हुआ। मर कर संसारमें परिभ्रम करता करता, फिर किसी दूसरी, तीसरी, चौथी, आदि उत्सर्पिणी कालके दूसरे समयमें उत्पन्न हो । फिर परिभ्रमण करता करता किसी भी उत्सपिणी कालके तीसरेसमयमें जन्म ले, फिर किसीभी उत्सर्पिणीके चौसमयमें जन्म ले। इसप्रकार अनुक्रमसे पांचवे, छठे, आदि समयोंमें जन्म लेलेकर उत्सर्पिणी कालके सब समयोंमें अनुक्रम्से जन्म ले. फिर इसीप्रकार अनुक्रमरो अवसर्पिणी कालके सब समयोंम जन्म ले । जिसप्रकार उत्सपिणी-अवसर्पिणी कालके सब समयोंमें अनक्रमसे जन्म लेकर उस उत्सपिणी-अवसर्पिणी कालको पूरा किया है, उसी प्रकार इन दोनो कालोंके प्रत्येक समयमें अनुक्रमसे मरण करता हुआ, दोनो कालोको पूर्ण करे । अनुक्रमके विना जो जन्म वा मरण किया जाता है, वह इसमें शामिल नहीं हैं । इस प्रकारके महा परिभ्रमणको कालपरिवर्तन कहते हैं । ___अब भवपरिवर्तनका स्वरूप कहते हैं। कोई जीव प्रथम नरकमें दस हजारकी जघन्य आयु पाकर उत्पन्न हुआ, और आयु समाप्त कर मर गया, तदनंतर फिर संसारमें परिभ्रमण करता हुआ किसी कालम उसी प्रथम नरकमें उतनीही आय पाकर उत्पन्न हआ और मर गया। तदनंतर फिर नमण करता-करता तीसरी बार वहींपर उतनीही आयु पाकर उत्पन्न हया और मर गया। इस प्रकार वह जीव दस हजार वर्ष के जितने समय होते हैं, उतनी ही बार दस-दस हजार वर्षकी आयु पाकर वहीं उत्पन्न हो, और मरण करे। तदनंतर फिर भ्रमण करता हुआ एक समय अधिक दस हजार वर्ष की आयु पाकर उसी नरकमें उत्पन्न हो। फिर दो समय अधिक, दस हजार वर्ष की आयु पाकर उत्पन्न हो। इस प्रकार एक-एक समय अधिक पाकर जन्म लेता हुआ सातों नरकोंकी तेहतीस सागरकी आयुको पूर्ण करे । क्रमप्राप्त आयुसे हीनाधिक आयु पाकर नरकमें जन्म लेना, इस परिबर्तनकी गिनती में नहीं है। जब नरककी तेहतीस सागरकी आयुको पूर्ण कर ले, तब तिर्यच योनि में अंतर्महूर्तकी आयु पाकर जन्म ले, फिर परिभ्रमण करता हुआ अंतर्मुहूर्त की आयु पाकर तिर्यंच योनिमें जन्म ले। इस प्रकार अंतर्मुहूर्तके जितने समय होते हैं, उतनीही बार अंतर्मुहर्तकी आयु पाकर तिर्यंच योनिमें

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