Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्ति सुधासिन्धु )
धर्मका स्वरूप कहा है, वह धर्म यथार्थ धर्म है, सब जीवोंका कल्याण करनेवाला है, अत्यंत पवित्र है, और इंद्र-नरेद्र धरणोंद्र आदि सव इनको मानते हैं । यह अहिंसामय धर्मही सत्र जीवोंको कल्याण करनेवाला है, सब जीवोंकी शांति प्राप्त करानेवाला है, और मोक्षका साक्षात कारण है । यही समझकर अपने हृदयमें परम शांति प्राप्त करनेके लिए समस्त भव्य जीवोंको यही पवित्र जैनधर्म अपने हृदयमें धारण करना चाहिए | इस जैनधर्मका माहात्म्य सर्वोपरि प्रसिद्ध है, जो महापुरुष इस पवित्र जैनधर्मको धारण करता है, उसकी सेवा इंद्रादिक देवभी किया करते है। मुनि लोग इसी पवित्र जैनधर्मको धारण करनेके कारण महापूज्य माने जाते हैं। इन्हीं सब कारणोंसे जैनधर्मका माहात्म्य तीनों लोकों में प्रसिद्ध है ।
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प्रश्न- वद मे चिन्त्यते जन्तोः कि पंचपरिवर्तनम् ?
अर्थ - हे भगवन् ! अन कृपा कर यह बतलाइए कि संसारीजीव जो संसार में पंचपरिवर्तनरूप परिभ्रमण किया करते हैं, उन पंचपरिवर्तन के स्वरूपका चितवन करने का क्या कारण है ? उ. द्रव्यस्य भावस्य भवस्य जन्तोः क्षेत्रस्य कालस्य यथा स्थितस्य युक्त्या प्रयुक्त्या नयमानयोगात् केनाप्युपायेन सतः स्वरूपम् शान्त्यर्थमेव ह्यवगम्यते च संसारलीलादिविदा नरेण । पूर्वोक्तवस्त्वादि विबोधितेपि वृथा प्रबोधः यदि चेन शांतिः
अर्थ- द्रव्य परिवर्तन, क्षेत्र परिवर्तन, काल परिवर्तन, भव परिवर्तन और भाव परिवर्तन ये पांच परिवर्तन कहलाते हैं जो पुरुष इस संसारकी लीलाको वा संसारके स्वरूपको जानते हैं, ने पुरुष अपने आत्मामें शांति प्राप्त करने के लिए किसीभी युक्ति प्रयुक्तिसे, वा किसी भी प्रमाणनयसे, वा अन्य किसी उपायसे इन पांचों परिवर्तनोंके यथार्थ स्वरूपको जाननेका प्रयत्न करते हैं। यदि पांचों परिवर्तनांके स्वरूपको जानकरभी उनके आत्मामें शांति प्राप्त न हो तो वह उनका जानना सब व्यर्थ समझना चाहिए ।
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भावार्थ - ऊपर लिख चुके हैं कि, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावके भेद से परिवर्तन वा संसारके पांच भेद हैं। इनमेंसे द्रव्यका अर्थ