Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
( शान्तिमुधासिन्धु )
शांति प्राप्त होती है, और उसकी शांति प्राप्त होनेसे अन्य समस्त जीवोंको शांति प्राप्त होती है । मुनिराज निर्विकार होते हैं, उनको शोक, जुगुप्सा आदि कोई दोष नहीं होते, इसलिए उनके दर्शन करनेमात्रसे सब जीवोंको शांति प्राप्त होती है 1 बे मनि स्वयं परम शांत होते है इसलिए उनके दर्शनसे समस्त जीवोंको शांति प्राप्त होती है, तथा बह शांति यहां तक बढ़ती है कि सिंह, व्याघ्न आदि कर जीवभी उन परम शांत भनियों के सामने पहुंचकर अपनी करता छोड़ देते हैं । और गांति धारण कर लेता है। यदि यह जीव मनुष्यपर्याय पा करके, तथा सज्जातित्व उच्च गोत्र आदि पा करके, इन सब विकारोंका त्याग कर देता हैं, तो उसको मोक्ष सुखको प्राति होकर सदाकाल के लिए अनंत शांति प्राप्त हो जाती है, तथा ऐसे मुक्त जीवोंकी भक्तिकर, तथा अनुकरण कर अनेक जीव विकारोंका त्याग कर, और मोक्ष प्राप्त कर परम शांत बन जाते है । इसप्रकार इन विकारोंके त्यागका फल शांति है। जो पुरुप विकारोंका तो त्याग कर देते हैं, परन्तु जिनके हृदयमें विकारोंका त्याग करने पर भी शांति प्राप्त नहीं होती, ऐसे जीवोंका वह विकारोंका त्याग सुशोभित नहीं होता अथवा यों कहना चाहिए कि उनका वह विकारोंका स्याग मिथ्या है, वा मायापूर्ण है । इसलिए प्रत्येक भव्यजीवका कर्तव्य है कि, वह अपने आत्मा परम शांति प्राप्त करनेके लिए इन सब विकारोंका त्याग करे और परम शांति प्राप्त कर अपने आत्माका कल्याण करे ।
प्रश्न - समाधिसाधनं स्वामिन् किमर्य क्रियते वद ?
अर्थ- हे स्वामिन् ! अब कृपा कर यह बतलाइये कि समाधिमरणका साधन किस लिए किया जाता है ?
उ.-स्निग्धान्नं त्यज्यते चादौ पानादिः सेव्यते क्रमात् । स्निग्धपानमपि त्यक्त्वा खरपानं हि सेव्यते ॥ ४३०॥ खरपानमपि त्यक्त्वोपवासः क्रियतेऽमल: इत्यादि साधनं शान्त्यै केवलं क्रियते सदा ॥४३१॥ तद्विना लंघनं मन्ये वरिद्राणां क्रियासमः । निष्फलो दुःखदो चयं प्रोक्तो विश्वहिताय हि ॥ ४३२।।