Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधा सिन्धु )
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योग्य होता हैं।
भावार्थ - जिस प्रकार किसी एक घरमें उस घरका जो स्वामी होता है, वह अपने घर के सब लोगोंका पालन करता है । घरमें जो पठाने योग्य होता है, उसको पढ़ाता है, जो दूध पीने उसको दूध पिलाता है, जो व्यापारमें योग्य होता है, उसको व्यापारमें लगाता है, और जो जिस योग्य होता है, उसको उसी काममें लगा देता है । वह गृहस्थ अपने घरमें किसी प्रकारका कलह नहीं होने देता. सबको सुखी रखता है । उसी प्रकार राजाभी अपने राज्यका स्वामी होता है । उसका यह कर्तव्य हो जाता है कि, वह अपने राज्य में सब प्रकारकी शांति बनाए रक्खे । प्रजावर्ग में जो व्यापारके योग्य हैं, उनको व्यापार में लगा देवे, जो सेनाके योग्य हैं, उनको सेनामें रक्खे जो खेती के योग्य हैं, उनको खेती में खखे, वा जो सेवा करने योग्य हैं, उनको सेवावृत्ति में लगावे । इसप्रकार वर्णव्यवस्था शास्त्रानुकूल बनाए रखना राजाका धर्म है, उसी प्रकार अपराधीको दंड देना राजाका काम है । यदि राजाका पुत्र स्वयं अपराध करे तो विना कुछ मोह, वा विचारके उसे अपने पुत्रकोभी दंड देना राजाका कर्तव्य है। जब तक राजाका पुत्र राजसिंहासनपर नहीं बैठता तब तक बही प्रजावर्ग में ही गिना जाता है । इसलिए राजाको प्रजा और पुत्रमें कोई भेद नहीं रखना चाहिए। ऐसा न्यायपरायण राजाही प्रजाके द्वारा पूजा जाता है, और वहभी शांति बनाए रखने के कारणही पूजा जाता है । जो राजा इसप्रकार न्यायपरायण नहीं होता, अथवा जो प्रजा पुत्रमें भेद करता है, तथा वर्णव्यवस्थाको तोड कर संसार में अशांति स्थापन करता है, ऐसा राजा प्रजाकेद्वारा दंडनीय होता है ।
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प्रश्न
राजद्रोहिनरत्यागहेतुः को विद्यते वद ?
अर्थ- हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि राजद्रोही मनुष्यका त्याग किसलिए किया जाता है ।
उत्तर - प्रजापालन रक्तो यो यदि मोहात्वलैर्नृपः ।
हन्यते राज्यहेतोर्थः शान्त्यर्थं सोपि वण्डयते ॥ ४७९ ।। न्यायनीतेर्यदा भ्रष्टः काष्ठांगारो यथा खलः । नीतिज्ञधर्मनिष्ठेन जीवंधरेण ताडितः ॥ ४८० ।।
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