Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 328
________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) भावार्थ- मेला, प्रतिष्ठाओं में अनेक धर्मात्मा पुरुष बुलाए जाते हैं वा स्वयं आते हैं, वे सब मिलकर आत्मतत्त्वकी चर्चा करते हैं, आत्माके कल्याणका उपाय बतलाते हैं, धर्मकी वृद्धि के उपाय बतलाते हैं, अपनी भावी संतानको धर्मात्मा बनानेका विचार करते है, विद्वान बनानेका विचार करते हैं, प्रभावनाअंगोंकी वृद्धि के लिए विचार करते हैं, और अनेक प्रकारका धर्मपिदेश देते हैं। ऐसा करनेसे स्वयं उनको शांति मिलती है, तथा सुननेवाले अनेक भव्य जीवोंको शांति प्राप्त होती है, तथा अनेक जीवोंका कल्याण होता है । उसी प्रकार यज्ञोपवीत आदि जितने संस्कार हैं, वा दान पूजा, वा परस्परका व्यवहार आदि जितनी प्रवृत्तियां है, वे सब इसप्रकार करनी चाहिए, जिससे परस्पर कभी विरोध न हो, तथा समस्त प्रवत्तियां शास्त्रान कल हो । परस्पर श्रावकोंके साथ वा अन्य लोगोंके साथ जो व्यवहार किया जाता है. वहभी शास्त्रानुकूल और शांतिके लिए होना चाहिए । ऐसा करनेतही धर्म की वृद्धि और आत्मामें शांति प्राप्त होती है । प्रश्न- किमर्थं पूज्यते राजा किमर्थं दण्ड्यते बद ! अर्थ- हे भगवान् अब कृपाजार ग्रह बतलाए कि विसीलिए तो राजाकी पूजा की जाती है, और राजाको किस लिए दंड दिया जाता है? उ.-स्वपुत्रवत्पालयति प्रजा यो दधाति शांति भुवि वृष्टिवद् वा। स एव राजा खलु पूज्यते च शान्त्यर्थमेवं सकलप्रजाभिः ।। इयं प्रजा मे तनयोस्ति चायमिति प्रमोहाद्धि करोति भेदम् । दुःखं प्रजानां तनयस्य सौख्यं ददाति चेद्यःस च दण्डनीयः ॥ अर्थ- जो राजा समस्त प्रजाका अपनी पुत्रके समान पालन करता है, और जो वर्षाके समान समस्त संसारमें शांति स्थापन करता है, वह राजा केवल शांति के लिए सब प्रजाके द्वारा पूजा जाता है, तथा जो राजा यह विचार करता है, कि यह तो प्रजा है, और यह मेरा पुत्र है। इस प्रकार विचार कर जो मोहके कारण अपने पुत्र और प्रजामें भेद स्थापन कर देता है, तथा जो प्रजाको दुःख दिया करता है, और अपने पुत्रको सुख पहुंचाता है, वह राजा शांतिभंगका कारण है, और इसीलिए वह राजा प्रजाकद्वारा दंडनीय होता है।

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