Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधासिन्धु )
भावार्थ- यहांपर इतना और समझ लेना चाहिए कि ये वर्ण जीविकाके हिसाबसे निर्माण होते हैं, तथा जातिया अनादि कालसे चली आती है । विवाह सम्बन्ध अपनी-अपनी जातिमें होता है, और जीविका वर्णानुसार होती है। वर्णके साथ विवाहका कोई मम्बन्ध नहीं है । जिस समय महाराज भरतने क्षत्रियों मे ब्राह्मण वर्णकी स्थापना की थी, उससे पहले जाति व्यवस्था नियत थी । ब्राह्मण वर्णकी स्थापना करते समय
काही र राना गतः के ग अहिंसाब्रतको धारण करने वाले व्रती थे, उनकोही ब्राह्मण संज्ञा ही थी, उसमें जातियोंका कोई ध्यान नहीं रखना गया था। इसलिए उन ब्राह्मणोंमें क्षत्रिययोंकी कितनी ही जातियां आ गई तथा उन्हीं जातियोंका मेष भाग क्षत्रिय वर्णमही बना रहा था । इस प्रकार एकही जातिके लोग ब्राह्मण वर्णम भी आ गये थे, और क्षत्रियवर्ण में भी बने रहे थे, तथा एकही जाति होनेक कारण उन दोनों वर्गों में विवाह-सम्बन्ध बना रहा था । इसीप्रकार जब भगवान वृषभदेवने वर्ण व्यवस्था नियत की थी-तब अनादि कालसे चले आये एक-एक जातिके लोगोंमें से कुछ भाग वैश्य वर्णमें रह गया था और कुछ भाग क्षत्रिय वर्णमें जा मिला था तथा एकही जाति होने के कारण उन दोनों में विवाह सम्बन्ध बना रहा था । इसप्रकार जातिव्यवस्था भित्र है, और वर्ण व्यवस्था भिन्न है । विवाहादिक जातिव्यवस्थाके आधीन है, और जीविका वर्णव्यवस्थाके आधीन है।
प्रश्न- अन्तविशुद्धिहीनाश्च जना मे वद कीदृशाः ?
अर्थ-- अब कृपाकर यह बतलाइए कि जो लोग अन्तरंग विशुद्धिको धारण नहीं करते वे कैसे हैं। उ. अन्तविशुद्धिः खलु यस्य बाह्मा शुद्धिर्भवेत् सौख्यफरा यतार्था अन्तविशुद्धिःप्रथमं च कार्या स्याद्वाह्यशुद्धिश्च यथाक्रमेण ।। ये केपि मूढा गमयन्ति कालं अन्तविशुद्धया हि विना वराकाः वथैव तेषां च भवेद्विचारः क्रियाकलापो विफलं नजन्म ॥ ___ अर्थ- जो पुरुरु अन्तरंग शुद्धिको धारण कर लेता है, उसके सुख देनेवाली और यथार्थ बायविशुद्धि अपनेआप हो जाती है । इसलिए प्रत्येक भन्यजीवको सबसे पहले अन्तरंग विशुद्धि धारण करनी चाहिए जिससे यथाक्रमसे ब्राह्मविशद्धिभी पूर्ण हो जाय । जो मूर्ख और नीच