Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधासिन्धु )
गृहकर्मादिसिद्धयर्थ क्वचिद्धर्मादिसिद्धये । हिंसानन्दमृषानन्दस्तेयानन्दयुतोपि यः।। ७१ ॥ सम्यक्त्तसम्म सम्पनः वास्तलो व्यापक्षक: ।
धर्मप्रभावको धीरो न याति नरकं नरः ॥ ७२ ॥
अर्थ- सम्यग्दर्शनके सुखमे सर्वथा रहित रहनेवाला मनुष्य यदि हिसानंद, मषानंद, स्तेयानंद, परिग्रहानंद इन चारों रौद्रध्यानोंको धारण करता है तो वह मनुष्य अवश्य हो नरक जाता है। परंतु जो मनुष्य सम्यग्दर्शनके सुखसे सुशोभित है, जिनशास्त्रोंका जानकार है, न्यायकी रक्षा करनेवाला है. धर्मकी प्रभावना करनेवाला है और धीर वीर है ऐसा मनुष्य यदि गृहस्थीके किमी कामके लिये अथवा कभी क्वचित् कदाचित् धर्मकायोंकी सिद्धि के लिए हिंसानंद वा मृषानंद वा स्तेयानंद अथवा परिग्रहानंद इन चारों रौद्रध्यानोंमसे कोई भी रौद्रध्यान धारण करता है अथवा चारोंको धारण करता है तो भी वह नरक नहीं जाता।
भावार्थ- हिंसामें आनंद मानकर हिंसा करने वा करानेका बार वार चितवन करना हिंसानंद नामका रौद्रध्यान है । झूट बोलने में आनंद मानकर झूठ बोलना वा झ्ठ बुलवाने के लिए बार-बार चितवन करना मृषानंद नामका रौद्रध्यान है । चोरीमें आनंद मानकर चोरी करने कराने के लिए बार-बार चितवन करना स्तेयानंद नामका रौद्रध्यान है
और परिग्रहम आनंद मानकर परिग्रहकी वृद्धि रक्षा आदिके लिए बार बार चितवन करना परिग्रहानंद नामक रौद्रध्यान है । ये चारों रौद्रध्यान नरकके कारण हैं और इसीलिए ये मुख्यतासे मिथ्यादृष्टियोंके ही होते हैं । यदि किसी सम्यग्दृष्टीके होते हैं तो अत्यंत मंदरूपसे होते हैं तथा चौथे गुणस्थान तक ही होते हैं । क्वचित कदाचित् किसी जीवके पांचवें गुणस्थानमें भी होते हैं । परंतु वे चौथे वा पाचवें गुणस्थानमें होनेवाले रौद्रध्यान नरकके कारण नहीं होते । इसका भी कारण यह है कि सम्यग्दष्टी पुरुषको आत्मज्ञान प्रगट होता जाता है और उसके परिणाम दया रूप हो जाते हैं इसलिए ऐसे दयालु पुरुषके रौद्रध्यानकी तीव्रता कभी नहीं हो सकती तथा रौद्रध्यानकी तीव्रता ही नरकका कारण है ।
सम्यग्दृष्टी पुरुषके यह रौद्रध्यान कभी तो घरके कामोंके लिए