Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधा सिन्धु )
अन्य समस्त शास्त्रोंकों छोड़कर भगवान जिनेन्द्रदेवके ही शास्त्रोंको क्यों पढ़ते हैं ?
उत्तर
संसारचक्रस्य विचर्द्धकत्वादेकान्तपक्षस्य समर्थकत्वात् ।
त्यक्त्वान्यशास्त्रं विधिवद् विचार्य, स्वर्मोक्षसिद्धेविधिदर्शकत्वात् ॥ ८९ ॥
यथार्थधर्मप्रतिपादकत्वात्, सापेक्षदृष्टया नयमानसिद्धः । जिनागमोऽस्त्येव च पाठनीयः,
स्वर्मोक्षसिद्धयं परिणामशुद्धयं ॥ ९० ॥
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अर्थ - भगवान जिनेन्द्रदेवके कहे हुए शास्त्रोंके सिवाय अन्य जितने शास्त्र हैं वे सब संसार-चक्रको बढानेवाले हैं और एकान्तपक्षका समर्थन करनेवाले हैं । भगवान जिनेन्द्रदेवके कहे हुए शास्त्र स्वर्ग और मोक्षकी सिद्धिको विधिपूर्वक दिखानेवाले हैं, यथार्थ धर्मको प्रतिपादन करनेवाले हैं और अपेक्षा पूर्वक प्रमाणनयसे सिद्ध हैं । इसलिए भव्यजीवोंको विधिपूर्वक विचार करके अन्य शास्त्रोंके पठनपाठनका त्याग कर देना चाहिए और स्वर्ग मोक्षकी सिद्धिके लिये तथा अपने परिणामों को शुद्ध रखनेके लिये भगवान जिनेन्द्रदेवके कहे हुए शास्त्रोंका ही पठनपाठन करना चाहिये ।
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भावार्थ - भगवान जिनेन्द्रदेव वीतराग और सर्वज्ञ हैं । जो वीतराग वा रागद्वेषसे रहित होता है वह किसी प्रकारका पक्षपात नहीं कर सकता तथा जो सर्वज्ञ होता है वह भी पदार्थका स्वरूप विपरीत नहीं कह सकता । इस प्रकार वीतराग सर्वज्ञ पुरुष कभी किसी पदार्थका स्वरूप विपरीत वा मिथ्या नहीं कह सकता । इसलिए भगवान जिनेन्द्रदेवके कहे हुए शास्त्रही यथार्थ शास्त्र हैं। वे ही पदार्थों के यथार्थस्वरूपको कहनेवाले हैं, वे ही आत्माके यथार्थ - स्वरूपको कहनेवाले है और वे ही . शास्त्र यथार्थ मोक्षमार्गका निरूपण करनेवाले हैं। प्रमाण और नयसे सिद्ध होनेवाले शास्त्र भगवान जिनेन्द्रदेव के कहे हुए शास्त्र हैं. इसलिए