Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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। शानिमुभागिन्ध ।
हित-अहितका विचार कर सकता है । गुणी और गुणज्ञ मनुष्योंके पास बैठनेमें गुणोंकी वृद्धि होती है । ज्ञानी मनुष्योंके पास बैठनेसे ज्ञानको वृद्धि होती है, और स्वपरभेदविज्ञानको धारण करनेवाले मनुष्योंके पास बैठनेमे आत्माका कल्याण होता है, आत्माका ज्ञान होता है, और अनेक पापोंका त्याग होता है, इसलिए भव्यपुरुषोंको उत्तम धर्मात्मा मनुष्योंकी संगतिही बैठना चाहिए । निर्लज्ज, अधार्मिक, निर्गुणी, मूर्ख, अविचारी और धार्मिक संस्कारोंसे रहित मनुष्योंके समीप कभी नहीं बैठना चाहिए।
प्रश्न- केषां कदा परीक्षा स्याद्वद मे सिद्धये प्रभो ?
अर्थ- हे स्वामिन् ! अब मुझे यह बतलानेकी कृपा कीजिए कि किन-किन लोगोंकी कब-कब परीक्षा हो जाती है? उ.-प्रभोः परीक्षा गुणदोषभेदे स्मृतेः परीक्षा सदसद्विचारे ।
साधोः परीक्षादुपसर्गकाले नारी परीक्षापि विपत्प्रकोणे ॥
मुक्तेः परीक्षापि यथार्थमार्गेऽसुरक्षणे स्यान्नृपतेः परीक्षा । शास्त्रार्थकालेऽखिलशास्त्रिणः स्यात मुख्या परीक्षा सुलभान्यकाले
अर्थ- देवकी परीक्षा गुण और दोष के भेद करनेसे होती है, स्मृतिकी परीक्षा सत् और असत्के विचार करने में होती है, साधकी परीक्षा उपसर्गके समय होती है, स्त्रीकी परीक्षा विपत्ति के समयमं होती है, मोक्षकी परीक्षा यथार्थ मार्गपर चलनेसे होती है, राजाकी परीक्षा प्राणियोंकी रक्षा करने में होती है, और समस्त. शास्त्रीलोगोंकी परीक्षा शास्त्रार्थके समयमें होती है। यह सबकी मुख्य परीक्षाका समय बतलाया है । सरल परीक्षा किसी अन्य समय में भी हो सकती है।
भावार्थ- जो वीतराग हो, सर्वज्ञ हो और हितोपदेशी हो उनको देव कहते हैं । जिनमें ये गुण न हों उनको देब कभी नहीं कह सकते हैं । जिनमें राग, द्वेष, काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि किसी प्रकारके विकार न हो तथा स्त्री, शस्त्र, अस्त्र, वस्त्र, आभषण आदि किसी प्रकारका परिग्रह न हो, उनको वीतराग कहते हैं । जो वीतराग होता है, वही सर्वज्ञ होता है । जो वीतराग नहीं होता वह कभी सर्वज्ञ नहीं हो सकता । इस प्रकार जो वीतराग और सर्वज्ञ होता है, वहीं