Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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{ शान्तिसुधासिन्धु )
प्रश्न - सेवावृत्तिभवेल्लोके किदृशी वद मे गुरो ?
अर्थ – हे प्रभो ! अब कृपाकर यह बतलाइये कि इस संसार में सेवावृत्ति वा सेवा करना कैसा है ? उ. मौन्येव मर्यो भयवान् क्षमावान वाग्मी प्रजल्पी च दमी ह्यभागी
यः पार्श्व वासीसखलश्च धृष्टः, सूदूरवासी विनयप्रलोपी २३२ स्यान्मन्वगामी हलसः प्रमादी, सुतीव्रगामी चपलोऽविचारी । स्वामीति भृत्यं वदति स्वमत्तः, सेवाप्रवृत्तिश्च ततो न कार्या
अर्थ – जिसकी सेवा की जाती है, उसको स्वामी कहते हैं । वह स्वामी अपने धनसे सदा मदोन्मत्त रहता है । यदि सेवक अधिक बातचीत नहीं करता, मौन रहता है, तो स्वामी उसे मूर्ख कहा करता है। यदि सेवक क्षमा धारण करता है, तो स्वामी जमे भयभीत बतलाता है । यदि सेवक अधिक बोलता है, तो स्वामो उसे बकवादी कहता है। यदि सेवक अपनी इन्द्रियोंका दमन करता रहता है, तो स्वामी उसे भाग्यहीन बतलाता है। यदि सेबक सदाकाल समीप रहता है, तो स्वामी उसे धृष्ट और दुष्ट कहता है । यदि सेवक दूर-दूर रहता है, तो स्वामी उसे अविनयी बतलाता है। यदि सेवक धीरे-धीरे चलता है, तो स्वामी उसे आलसी और प्रमादी कहता है । तथा यदि सेवक शीघ्रताके साथ चलता है तो स्वामी उसे विचार न करनेवाला चंचल बतलाता है इस प्रकार यह स्वामी प्रत्येक बातमें सेवकको निन्दा करता है, इसलिए यह सेवावृत्ति कभी किसीको नहीं करनी चाहिए ।
भावार्थ - वास्तव में देखा जाय तो सेवा करना निन्दनीय कार्य है। कोई पूरुष निर्धन होने के कारण दूसरोंकी सेवा करता है । परन्तु स्वामी इस बातको नहीं समझता । धनी स्वामी अपने धनमें उन्मत्त रहता है, इसलिए वह उस सेवकके गुण-दोषोंको कुछ नहीं देखता, यदि सेवकमें अनेक गुण भी होते हैं, तोभी वह उनको दोषही बतलाया करता है । यदि सेवक कम बोलता है तो स्वामी उसे मूर्ख कहता है, गूंगा कहता है। यदि अधिक बोलता है तो उसे बक-बक करनेवाला बकवादी कहता है । यदि सेवक क्रोध करता है तो स्वामी उसे क्रोधी