Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधासिन्धु )
हत्यारा कहता है। यदि क्षमा धारण करता है, तो भयभीत वा डरपोक बतलाता है । यदि वह इंद्रियोंको वशमें रखता है, तो उसे भाग्यहीन बतलाता है । यदि सेवा करनेके लिए समीप रहता है, तो उसे भ्रष्ट कहता है, दूर रहता है, तो अविनयी, कामचोर बतलाता है। धीरे चलता है, तो आलसी कहता है। यदि शीघ्र चलता है, तो चंचल वा बिना वितारे काम करनेवाला कहता है । कहां तक कहा जाय, सेवकके लिए कहीं किसी प्रकारभी सुख नहीं है, इसलिए धनसे उन्मत्त रहनेवाले धनी लोगोंकी सेवा कभी नहीं करना चाहिए, यदि सेवाही करना है तो, भगवान अरहंत देवकी सेवा करना चाहिए अथवा वीतराग निग्रंथ गुरुकी सेवा करना चाहिए। इनकी सेवा करना सदाकाल प्रशंसनीय माना जाता है, तथा धनीकी सेवा करने में बहुतसी निंदाके साथ-साथ थोडासा धन प्राप्त होता है, परंतु भगवान अरहंत देवकी सेवा को लथा ती। निगम की सेगरी तीनों लोकोंकी संपत्ति प्राप्त होती है, तीनों लोकोंके इंद्र उसके दास हो जाते हैं, और वह परमपूज्य हो जाता है 1 धनिकोंकी सेवा करते करते अनंतकाल बीत गया. और इसके फलस्वरुप सिवाय नरकादि दुःखके और कुछ प्राप्त नहीं हुआ, इसलिए अब धनिकोंकी सेवाका त्याग कर, देव और गुरुकी सेवा करना चाहिए जिससे आत्माका यथार्थ कल्याण हो ।
प्रश्न – राजा नियुज्यते राज्य कीदृग्मे शान्तये वद ?
अर्थ - हे भगवन् ? अब कृपाकर यह बतलाइये कि राज्यसिंहासनपर कैसा राजा नियुक्त करना चाहिए। उ. उवारबुद्धिर्वरधर्यधारी त्राता, सुनां निजपुत्रवत् यः । - स्वाचारनिष्ठः कुशलः सधर्मोऽमानी, सनोतिविनयी प्रतापो॥
धोरः कृपालुर्भवभीरुरेव, समस्तसंसारविचारवेदी। स्वानंदतुष्टः स्वपरात्मतोषी, राजा स राज्ये सुजनैनियोज्यः॥)
अर्थ - जो उदार बुद्धिको धारण करनेवाला हो, धीर-बीर हो, समस्त प्राणियोको पुत्रके समान रक्षा केरनेवाला हो, अपने आचरण और विचारों में श्रद्धा रखनेबाला हो, प्रत्येक कार्यमें कुशल हो, धर्मको