Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधासिन्धु )
धारण करनेवाला हो, अभिमानी न हो, न्याय और नीतिका पालन करनेवाला हो, विनयवान् हो, प्रतापी हो, धैर्यको धारण करनेवाला हो, कृपाल हो, संसारसे भयभीत हो, समस्त संसारके विचारोंको जाननेवाला हो, अपने आत्मासे उत्पः होनेवाले लद हो धारण करनेवाला हो, और सबको संतुष्ट रखनेवाला हो, ऐसा पुरुष सज्जनोंके द्वारा राज्यसिंहासनपर नियुक्त होना चाहिए।)
भावार्थ - यह नियम है कि जैसा राजा होता है, वैसीही प्रजा हो जाती है । यदि राजा धर्मात्मा होता है, तो प्रजाभी धर्मात्मा होती है, यदि राजा पापी होता है, तो प्रजाभी पाप करने लगती है। यदि राजा साधारण होता है, तो प्रजाभी साधारणही रह जाती है । यदि राजा दान-धर्म करने लगता है, तो प्रजाभी दान-धर्म करने लगती है। अपने राज्यमें राजा सबसे बड़ा माना जाता है । इसलिए सब प्रजा उसीके अनुसार चलती है । यदि राजा उन्नतिशील होता है. तो उसकी प्रजाभी उन्नति करने लगती है। यदि राजा आलसी होता है, तो प्रजाभी आलस्य करने लगती है । यदि राजा व्यापार-कुशल होता है, तो प्रजाभी व्यापारमें कुशल होती है। यदि राजा गुरुभक्त होता है, तो प्रजाभी गुरुभक्त बनती है । अभिप्राय यह है कि जैसा राजा होता है. वेसीही प्रजा होती है । इसलिए लोगोंको उचित है कि वे राज्य-सिंहासनपर ऐसे पुरुषको नियुक्त करें जिसमें राजाके पूर्ण गुण विद्यमान हो । राजाको सबसे पहले क्रोध, मान, काम, मोह आदि अंतरंग शत्रुओंको जीत लेना चाहिए । जो अंतरंग शत्रुओंको नहीं जीत सकता. वह राज्यके बाहरी शत्रओंकोभी नहीं जीत सकता । इसलिए अंतरंग शत्रुओंको जीतना उसके लिए परम । आवश्यक है । इसके सिवाय दान, मान, दंड, भेद, संधि, विग्रह आदि गुणोंकोभी जान लेना चाहिए । यदि राजा इन गुणोंसे काम न लेगा तो उसका राज्य कभी नहीं टिक सकता । इन नीतियोंका जानकार राजा अपनेसे बडे राजाओं को भी वशमें कर लेता है, और इन गुणोंसे काम न लेनेवाला बडा राजाभी, छोटे राजाकेद्वारा परास्त होकर नष्ट हो जाता है । इसलिए इन नीतियोका जाननाभी. राजाके लिए परम आवश्यक है। इस प्रकार अपनी प्रजाको संतुष्ट रखनाभी