Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
। शान्तिसुधासिन्धु)
अर्थ- जो प्रदेश इंद्रियोंको सुख देनेवाला हो, तथापि जिस प्रदेशम शुद्ध चारित्रका पालन न हो सकता हो, जिसमें मनियोंका निवास न हो, जिसमें आत्माके कल्याण करनेवाली बुद्धि न हो, जिसमें आत्माका कल्याण करनेवाला कोई न रहता हो, जिसमें कोई धर्मात्मा न रहता हो, जिसमें कोई धर्मसे प्रेम न रखता हो, जिसमें तत्त्वोंकी चर्चा न की जाती हो, जिसमें मोक्ष देनेवाले मयम और शीलकी प्राप्ति न होनी ही, और जिसमें न्याय और नीतिका पालन करनेवाला, तथा सुख देनवाला राजा न हो, ऐसे देशमें अपने आत्मजन्य आनंदको पीनकी इच्छा करनेवाले और मोक्षकी इच्छा करनेवाले भव्यजीवोंको स्वप्नमेंभी कभी नहीं रहना चाहिए।
भावार्थ- यह मनुष्य जन्म मोक्ष प्राप्त करने के लिए और उसके कारणभत धर्मको साधन करने के लिए है। इंद्रियोंके सुख तो पश योनिमेंभी प्राप्त होते हैं, परंतु मोक्षकी प्राप्ति और उसके कारणभन धर्मका साधन पशु बोनिमें नहीं है । देव योनिमे इंद्रियोंके मुख सबसे अधिक हैं, परंतु मोक्षकी प्राप्ति और चारित्र धारण करने का माधन वहांभी नहीं है । एक मनुष्य पर्यायही मोक्ष की प्राप्ति और उसके कारणभूत धर्मका साधन हो सकता है, अन्य किसी पर्याय में नहीं। मनुष्य पर्याय में भी म्लेंच्छखंडोंमें मोक्षका कोई साधन नहीं हैं, क्योंकि आर्यखंड मेंही मोक्षके साधन हैं, आर्यखंडमेंही तीर्थकरोंका विहार होता है, और आर्यखंडमेंही शुद्ध चारित्र धारण किया जा सकता है । आर्यखंडमें शुद्रादिकोंको मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती है, उच्च वर्णकी सज्जातिमें जन्म लेनेवाले मनुष्योंकोही मोक्षकी प्राप्ति होती है, तथा वे ही लोग मोक्षक साधनभूत चारित्रको धारण कर सकते हैं । इंद्रियमुख तो अनादिकालसे यह जीव भोगताही आ रहा है, और उसके लिए महा पाप करता हुआ परिभ्रमण करता आ रहा है, इस लिए बड़ी कठिनतासे प्राप्त होनेवाले इस मनुष्य पर्यायको पाकर इंद्रियोंके सुखोंकी लालसाका त्याग कर देना चाहिए और धर्मको धारण करने के लिये ऐमें स्थानमें ही रहना चाहिए, जहां धर्मके सब साधन हो, जहाँपर जिनालय हों, जैन शास्त्रोंके बिद्वान् हों, मुनियोंका विहार हो, समय, शील, चारित्र, नत, उपवास, प्रभावना आदिके साधन अधिक रूपमें मिलते हों, और