Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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(३०) बहुत आभार माना और संसार से विरक्त हो ायिका की दीक्षा
ले ली। चौरासी लाख पूर्वतक राज्य करने के बाद अनन्तवीर्य की अकस्मात् मृत्यु ११८-१२३ । ७१-७२
हो गई। अपराजित को भाई की मृत्यु का बहुत दुःख हुआ। परन्तु उसे रोक उन्होंने मुनि दीक्षा धारण करली और अन्त में समाधिमरण कर अच्युत स्वर्ग में इन्द्र हुए।
सप्तम सर्ग एकबार अपराजित का जीव अच्युतेन्द्र नन्दीश्वर द्वीप की वन्दना कर सुमेरु १-१. । ७३-७४
पर्वत पर गया वहां अन्तिम जिनालय में एक विद्याधर राजा को देख कर उसे बहुत प्रीति उत्पन्न हुई। उसने अपने देशावधिज्ञान से उस विद्याधर के साथ अपने पूर्वभवों का सम्बन्ध जान लिया। इधर विद्याधर राजा को हृदय में अच्युतेन्द्र के प्रति भी आकर्षण
उत्पन्न हो रहा या इसलिये उसने उसका कारण पूछा। अच्युतेन्द्र ने विद्याधर राजा के साथ अपने पूर्व भव का सम्बन्ध बतलाते हुए ११-३२ । ७४-७६
कहा कि विजयाध की दक्षिण श्रेणी पर स्थित रथनूपुर नगर में एक ज्वलनजटी राजा रहता था उसके वायुवेगा स्त्री से उत्पन्न अर्ककीर्ति नाम का पुत्र था। क्रमसे उसकी वायुवेगा स्त्री से स्वयंप्रभा नाम की पुत्री उत्पन्न हुई। जब स्वयंप्रभा यौवनवती हुई तब विवाह के लिये ज्वलनजटी ने अपने निमित्त ज्ञानी पुरोहित से पूछा। उसने भरतक्षेत्र सम्बन्धी सुरमा देश के पोदनपुर नगर के
राजा प्रजापति के पुत्र त्रिपृष्ट नारायण को देने की बात कही। ज्वलनजटी ने इन्दुनामक विद्याधर को भेजकर राजा प्रजापति से स्वी- ३३-१०० । ७६-८२
कृति ले ली। अनन्तर पोदनपुर जाकर त्रिपृष्ठ के साथ स्वयंप्रभा का विवाह कर दिया। इधर अश्वग्रीव भी स्वयंप्रभा को चाहता था इसलिये उसने रुष्ट होकर भूमिगोचरियों-विजय और त्रिपृष्ठ से युद्ध किया । अन्त में त्रिपृष्ठ के हाथ से अश्वग्रीव मारा गया। त्रिपृष्ठ नारायण और विजय बलभद्र हुए। इन्हीं बलभद्र और नारायण के परिवार का विशद वर्णन। अमिततेज श्रीविजय और सुतारा के अपहरण की चर्चा।
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