Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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षष्ठः सर्गः
तद्भूरिविक्रमक्रीतं ●
श्रथाश्वास्याशु संतप्तां 'लाङ्गली कनकश्रियम् । पितुर्मरणशोकेन कोलीनेन च भूयसा || १ || तस्य बन्धुताकृत्य मन्त्यमण्डनपूर्वकम् । दमितारेरचीकरत् ॥२॥ प्रादिशच्चाभयं भीतहतशेष 'नभःसदाम् | स्तुवतां प्राखलीभूय नामग्राहं सपौरुषम् ||३|| पापाज्जुगुप्समानोऽन्तः प्रणिनिन्द स्वचेष्टितम् । पश्यंस्तथाविधां रौद्रां वर्याशंसनसंपदम् ॥४॥ भ्रातरं च पुरोधाय चक्रिणं कन्यया सह । प्रातिष्ठत विमानेन नगर्यामुत्सुकस्ततः ||५|| व्रजता भूरिवेगेन जवनिश्चलकेतुना । तेनास्थितं विमानेन सहसा व्योम्नि निश्चलम् ॥ ६ ॥
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षष्ठ सर्ग
अथानन्तर बलभद्र अपराजित ने पिता के मरण सम्बन्धी शोक और बहुत भारी लोकापवाद से संतप्त कनकश्री को शीघ्र ही सान्त्वना देकर, दमितारि का अन्तिम संस्कार कराया । वह अन्तिम संस्कार अन्तकाल में पहिनाये जाने वाले आभूषणादि पहिनाने की प्रक्रिया को पूरा कर किया गया था तथा उसके बहुत भारी पराक्रम के अनुरूप सम्पन्न हुआ था ॥ १ - २ ।। जो हाथ जोड़कर तथा नाम ले ले कर पराक्रम की व्याख्यान करते हुए स्तुति कर रहे थे ऐसे मरने से शेष बचे भयभीत विद्याधरों के लिये उसने अभय की घोषणा की थी || ३ || अपराजित ने जब उस प्रकार की भयङ्कर शत्रुत्रों की सामूहिक मृत्यु देखी तब वह पाप से ग्लानि करता हुआ मन में अपने कार्य की निन्दा करने
लगा ||४||
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तदनन्तर अपनी नगरी के विषय में उत्कण्ठित अपराजित ने चक्रवर्ती भाई को आगे कर कन्या के साथ विमान द्वारा प्रस्थान किया || ५ || वेग के कारण जिसकी पताका निश्चल थी ऐसा बहुत भारी वेग से जाता हुआ वह विमान आकाश में सहसा निश्चल खड़ा हो गया || ६ || महापरा
१ बलभद्र : २ निन्दया ३ अत्यधिकन * क्रीतो ब० ४ विद्याधराणाम् ।
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