Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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श्री शांतिनाथपुराणम्
तत्रास्ति हास्तिनं नाम्ना नगरं भरतश्रियः । निर्जितत्रिजगत्कान्तेनिवासेक महोत्वसम् ॥ ११ ॥ यस्मिन्निवासिलोकोऽमृद्धि 'बुधोऽप्यविमानगः । निस्त्रिग्राहयुक्तोऽपि विजमस्थितिराजितः ॥ १२॥ सुवृत स्योन्नतस्यापि स्तनयुग्मस्य योषिताम् । यत्रोपर्यभवद्धारः स्वं वास्यातु ं 'गुणस्थितिम् ॥ १३ ॥ यस्मि विपरिणमार्गेषु विचित्रमरिणरश्मिभिः । 'शारिताङ्गतया लोकैर्न व्यभावि परस्परम् ||१४|| यत्र चन्द्रावदातेषु प्रासादेष्वेव केवलम् । पलक्ष्यत महामान ' ' स्तम्भसंभारविभ्रमः ॥१५॥ यत्रासीत्कोकिलेष्वेव २ सहकारपरिभ्रमः । अत्यन्तकमलायासः प्रत्यहं भ्रमरेषु च ॥ १६ ॥ यस्मिन्सौधाश्च योधाश्च परदारेषु संगताः । प्रतिचित्रं तथाप्यूहुः पताकामन्यदुर्लभाम् ॥१७॥
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उसी प्रकार सज्जन भी अन्तः सरलवृत्ति - भीतर से निष्कपट व्यवहार से युक्त थे और जिस प्रकार पर्वत महासत्त्व — सिंह - व्याघ्र आदि बड़े बड़े जीवों से सहित होते हैं उसीप्रकार सज्जन भी महासत्त्व - महान् पराक्रम से युक्त थे ॥ १० ॥
उस कुरुदेश में हस्तिनापुर नामका नगर है जो तीनों जगत् की कान्ति को जीतने वाली भरत क्षेत्र की लक्ष्मी का निवास भूत अद्वितीय कमल है ।।११।। जिसमें निवास करने वाला मनुष्य विबुधदेव होकर भी अविमानग - विमान से गमन करने वाला नहीं था ( परिहार पक्ष में विशिष्ट विद्वान होकर भी अत्यधिक अहंकार को प्राप्त करने वाला नहीं था ) तथा निस्त्रिशग्राहयुक्तः - क्रूर ग्राहजल जन्तुओं से युक्त होकर भी विजलस्थितिराजित - जल के सद्भाव से सुशोभित नहीं था ( पक्षमें तलवार को ग्रहण करने वाले लोगों से सहित होकर भी मूर्खों के सद्भाव से सुशोभित नहीं था ) ||१२|| जहां स्त्रियों का स्तन युगल यद्यपि सुवृत्त - अत्यन्त गोल था ( पक्ष में सदाचार से युक्त था ) तथा उन्नत—ऊंचा उठा हुआ ( पक्ष में उत्कृष्ट था ) तो भी उस पर हार - मणियों का हार ( पक्ष में पराजय ) पड़ा हुआ था जिससे ऐसा जान पड़ता था मानों वह हार अपने आपको गुणस्थिति — सूत्रों स्थिति से सहित ( पक्ष में गौरणप्रप्रधान स्थिति से युक्त ) कहने के लिये ही पड़ा हुआ था ।। १३ ।।
जहां बाजार के मार्गों में चित्र विचित्र मणियों की किरणों से शरीर के कल्मासित - विविध रङ्गों से युक्त हो जाने के कारण लोग परस्पर एक दूसरे को पहिचानते नहीं थे || १४ || जहां महामान स्तम्भसंभारविभ्रम-ऊंचे ऊंचे खम्भों के भार की शोभा केवल चन्द्रमा के समान उज्ज्वल महलों में ही दिखायी देती थी वहां के मनुष्यों में प्रत्यधिक अहंकार से उत्पन्न हुए गत्यवरोध के समूह का विशिष्ट
१ देवोऽपि पक्षे विशिष्ट बुधोऽपि २ विमानेन न गच्छतीति भविमानग: पक्षे विशिष्टं मानं गच्छतीति विमानगः, तथा न भवतिः इति अविमानगः । ३ क्रूरग्राह युक्तोऽपि पक्षे खड्गग्राहिजनयुक्तोऽपि ४ जलाभावस्थित्या राजितः शोभितः पक्षे विगता विनष्टा या जडस्थिति: धूर्तजन सदभावः तया राजितः ५ सदाचारस्यापि पक्षे वर्तुलाकारस्यापि ६ श्रेष्ठस्य पक्षे उन्नतस्यापि ७ हारः पराजयः पक्षे कण्ठालंकारः ८ गुणानां सूत्राणां स्थिति: सद्भावो यस्मिन् तथाभूतं पक्ष अप्रधान स्थितिम् ६ कल्माषित शरीरतया १० पर्यंचारि ११ महोत्त ङ्गस्तम्भ समूह शोभा पक्षे महामानेन अधिकगर्वेण यः स्तम्भो गत्यावरोधस्तस्य संभारः तेन विभ्रमः १२ अतिसौरभाम्रवृक्षेषु परिभ्रमण पक्षे सहायकेषु परिभ्रमः परितः संदेहः १३ कमल पुष्प प्राप्त्यर्थमधिकप्रयासः पक्षे कमलायैलक्ष्म्यै अत्यन्त आयासः खेदः १४ उत्कृष्ट स्त्रीषु पक्षे शत्रुविदारणेषु ।
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