Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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त्रयोदशः सर्गः
१७५ गजराजं सदा क्षीवं महोक्षं' वीरगजितम् । लङ्घयन्तं नवान् सिंहं पद्म पद्मासनस्थिताम् ॥ ४८ ॥ ernaयं श्रममृङ्गः धुतान्धतमसं विधुम् । उज्जिहानं सहस्रांशु क्रीडन्मत्स्ययुगं हृदे ॥ ४६ ॥ शातकुम्भमयौ कुम्भो सरः सरसिजाविलम्" । चञ्चद्वीचिचयं वाद्धि 'हेमं सिंहासनं महत् ॥५०॥ विमानमामरं कान्तमाहीनं सद्म सम्मरिण । स्फारांशुरत्नसंघातं हुताशं च स्फुरत्प्रभम् ।। ५१ ।। एतान्विलोक्य सा बुद्धा गृहीतप्रतिमङ्गला । सुव्रताय नरेन्द्राय सवःस्थाय न्यवेदयत् ।। ५२ ।। श्रुत्वा श्रव्यांस्ततः स्वप्नानन्तः प्रमदनिर्भरः । तेषामित्थं फलान्यस्या वक्तुं प्रववृते प्रभुः ।। ५३ ।। त्रिजगतां पाता वृषात्कर्ता 'वृषस्पितेः । सिंहात्सिह इवाभीको लक्ष्म्या जन्माभिषेकवान् ।। ५४ ।। वामभ्यां यशसा स्थास्तुश्चन्द्राभुवि तमोपहः ॥२३ "हंसायाम्बुजद्योती मत्स्य युग्मात्सु निर्वृतः ।। ५५ ।। कुम्भाभ्यां १४ लक्षणाधारो बीततृष्णः सरोवरात् । सागरात्सकलज्ञानी मुक्तिभाक्सिह विष्टरात् ।। ५६ ।
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और जो उत्तम भवन के भीतर बिछी हुई कोमल शय्या पर अच्छी तरह शयन कर रही थी ऐसी उस ऐरा देवी ने रात्रि के अन्त भाग में ये स्वप्न देखे ||४७ ||
निरन्तर उन्मत्त रहने वाला हाथी, गम्भीर गर्जना से युक्त महावृषभ, पर्वतों को लांघता हुआ सिंह, कमल रूप प्रासन पर स्थित लक्ष्मी, मंडराते हुए भ्रमरों से युक्त दो मालाएं, सघन अन्धकार को नष्ट करने वाला चन्द्रमा, उगता हुआ सूर्य, तालाब में क्रीडा करता हुआ मछलियों का युगल, सुवर्णमय दो कलश, कमलों से परिपूर्ण सरोवर, लहराता हुआ समुद्र, सुवर्णमय महान् सिंहासन, सुन्दर देव विमान, श्रेष्ठ मणियों से युक्त धरणेन्द्र का भवन, विशाल किरणों से सहित रत्नराशि, और देदीप्यमान अग्नि; इन स्वप्नों को देखकर वह जाग उठी । तदनन्तर मङ्गलमय कार्यों को सम्पन्न कर उसने सभा में बैठे हुए व्रती राजा विश्वसेन के लिए ये सब स्वप्न कहे ||४८-५२।।
तदनन्तर श्रवण करने के योग्य उन स्वप्नों को सुनकर भीतर हर्ष से भरे हुए राजा विश्वसेन रानी के लिये उन स्वप्नों का इस प्रकार फल कहने के लिए प्रवृत्त हुए ।। ५३|| हाथी से तीन जगत् का रक्षक, वृषभ से धर्म स्थिति का कर्ता, सिंह से सिंह के समान निर्भीक, लक्ष्मी से जन्माभिषेक से सहित, माला युगल से यशस्वी, चन्द्रमा से पृथिवी पर अन्धकार को नष्ट करने वाला, सूर्य से भव्य रूपी कमलों को विकसित करने वाला, मत्स्य युगल से अत्यन्त सुखी, कलशयुगल से लक्षणों का आधार, सरोवर से तृष्णा रहित, समुद्र से सर्वज्ञ, सिंहासन से मुक्ति को प्राप्त करने वाला, विमान से स्वर्ग से आने वाला, धरणेन्द्र के भवन से तीर्थ का कर्ता, रत्नराशि से गुरण रूपी रत्नों का स्वामी,
१ महावृषभम् २ पर्वतान् ३ दूरीकृतसान्द्रतिमिरम् ७ ममराणामिदम् आमरम् ८ महीनस्य नागेन्द्रस्येदम् आहीनम् तिमिरनाशकः १२ सूर्यात् १३ अतिसंतुष्टः सातिशयसुखी शरीरगतशुभचिह्नाना माधारः ।
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४ उदीयमानम् ५ कमलाकीर्णम् ६ सौवर्णम् धर्मस्थिते । १० भयरहित ११ अज्ञान१४ सामुद्रिक शास्त्र प्रोक्ताष्टोत्तरसहस्रलक्षरणामां
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