Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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श्रीशान्तिनापुराणम्
सम्मार्जयन्तः परितो चरित्रों रजांसि दूरं सुरभीकृताशाः ।
श्रवाकाः स्थावरजङ्गमानामच प्रयातं मरुतः प्रयान्ति ॥ २२० ॥ पुरः सलीलं परिनतंयस्थां विद्युद्वष् मेघकुमारवर्गः ।
सपारिजातप्रसवाभिरद्भिरुक्षां' बभूव क्षितिमक्षि रम्याम् ।।२२१ ।। विचित्रङ्गावलि भक्तियुक्ता चित्रीयमाणा 'पदवी सचित्रा ।
उपेयमानापि जनैः सरागैरनेकवेर्षविरजा' विरेजे ।। २२२ ॥ प्रशोकसमुक्षु रम्भा प्रियंगुनारङ्गसमन्वितानि ।
वनानि रम्याण्यमितोऽपि मार्ग प्रायुर्ब नव रतये जनानाम् ।।२२३|| विस्तारलक्ष्म्या सहितः स मार्गस्त्रियोजनः सम्मितया व्यराजत् ।
सीमन्तरेवाद्वितयो च तस्य गव्यूतिमात्रद्वय विस्तृता स्यात् ॥ २२४ ॥ | स तोरण मंजू वर्ययुक्तैरुसन्धिले रस्नमयेर मेकः ।
'कव्यनि निर "केऽपि चित्रं विचित्रं तनुते स्म चित्रम् ।। २२५ ।। विचित्र पुष्पे रथ पुष्पमण्डपो व्यधायि 'वानेयसुरंमनोरमः ।
नरामराणामिव पुण्यसंचयः स्थितः समूर्तिदिवि स द्वियोजनः ॥ २२६॥ |
जो चारों ओर पृथिवी की धूलि को झाड़ रहे थे, दूर दूर तक दिशाओं को सुगन्धित कर रहे थे, तथा चर अचर जीवों को बाधा नहीं पहुंचा रहे थे ऐसे पवन कुमार देव आगे आगे प्रयाण कर रहे थे ।। २२० ।। जो अपनी बिजली रूपी वधू को लीला सहित नचा रहा था ऐसे मेघकुमार देवों का समूह आगे आगे नयनाभिराम पृथिवी को कल्पवृक्ष के फूलों से युक्त जल के द्वारा सींच रहा था ।। २२१ ।। जो रांगोलियों की विविध रचनाओं से युक्त था, अनेक चित्रों से सजाया गया था, आश्चर्य उत्पन्न कर रहा था, प्रेमसे भरे नाना वेषों को धारण करने वाले लोग जहां आ रहे थे तथा जो धूलि से रहित था ऐसा मार्ग सुशोभित हो रहा था ॥ २२२ ॥ मनुष्यों की प्रीति के लिये मार्ग के दोनों ओर अशोक, ग्राम, सुपारी, ईख, केला, प्रियङगु और नारंगी के वृक्षों से सहित सुन्दर वन प्रकट हो गये ।। २२३ ॥ | वह मार्ग तीन योजन विस्तृत लक्ष्मी से सुशोभित हो रहा था और उसकी दोनों ओर की सीमान्त रेखाएं एक कोश चौड़ी थीं ।। २२४ ।। वह मार्ग मङ्गल द्रव्यों से युक्त, खड़े किये हुए अनेक रत्नमय गगनचुम्बी तोरणों के द्वारा मेघरहित आकाश में भी नाना प्रकार के चित्र विस्तृत कर रहा था यह आश्चर्य की बात थी ।। २२५ ।।
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तदनन्तर व्यन्तर देवों
श्राकाश में नाना प्रकार के फूलों से मनोहर दो योजन विस्तार वाला वह पुष्प मण्डप बनाया जो मनुष्यों और देवों के शरीरधारी पुण्य समूह के समान स्थित था ।। २२६ ।। उस पुष्प मण्डप 'बीच में एक ऐसा चँदेवा प्रकट हुआ जो गुच्छों से बना हुआ था, जिसके
१ सेचयामास २ नयन प्रियाम् ३ मार्ग : ४ धूलिरहिता ५ मेघरहितेऽपि ६ व्यन्तरदेवैः ।
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