Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
View full book text
________________
कविप्रशस्तिपद्यानि
२५७
व्याख्यानशीलत्वमवेक्ष्य तस्य श्रद्धां पुराणेषु च पुण्यबुद्धः।
कवित्वहीनोऽपि गुरौ निबन्धे तस्मिन्नधासीवसगः प्रबन्धम् ॥६॥
उत्पलमालभारिणी चरितं विरचम्य 'सन्मतीयं सबलंकारविचित्रवृत्तबन्धम् ।
स पुराणमिदं व्यत्त शान्तेरसगः साधुजनप्रमोहशान्त्य ॥७॥
था और द्विजाधिनाथ-पक्षियों का राजा ( पक्ष में ब्राह्मण) होकर भी विपक्षपात-पङ्खों के संचार से रहित ( पक्षमें पक्षपात से रहित ) था ।।५।। उस पवित्र बुद्धि जिनाप की व्याख्यान शीलता और पुराण विषयक श्रद्धा को देख कर उसका बहुत भारी आग्रह होने पर असग ने कवित्वहीन-काव्यनिर्माण की शक्ति से हीन होने पर भी इस प्रबन्ध-शान्तिपुराण की रचना की थी॥६।। उस असग ने उत्तम अलंकार और विविध छन्दों से युक्त वर्धमानचारित की रचना कर साधुजनों के प्रकृष्टमोह की शान्ति के लिये यह शान्ति जिनेन्द्र का पुराण रचा था ॥७॥
allahahe
१ वर्धमानसम्बन्धि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org