Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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त्रयोदशः सर्गः अथिनामुपभोगाय कल्पितात्मविभूतिभिः । सवृत्त मुह्यते यस्मिन्नारण्यैरपि पादपैः ।।६।। जगत्तापनुदो यस्मिन्विशुद्धतरवारयः । पाकराः सुभूपाश्च सेव्यन्ते अवलद्विजः ॥७॥ सरितो यत्र राजीवपरागपरिपिञ्जरम् । जलं हेमरसप्रख्यं बधते हिमशीतलम् ॥८॥ विपल्लवतया होना पान्थभुक्तफल श्रियः । मार्गस्था जनता यस्मिन्वीरुधश्च चकासति ॥६॥ 'तुङ्गवलता धारैरन्त: सरलवृत्तिभिः । महीध्रः सुजनैर्यश्च महासत्त्वरलंकृतः ॥१०॥
संकलित की है ऐसे वनवृक्षों के द्वारा भी जहां सद्पुरुषों का आचार धारण किया जाता है । भावार्थ-जहां के मनुष्यों की बात ही क्या, वन वृक्ष भी सत्पुरुषों के प्राचार का पालन करते हैं ॥६॥ जिस देश में धवलद्विज-राजहंस पक्षी, जगत् की गर्मी को दूर करने वाले तथा अत्यन्त निर्मल जल से युक्त तालाबों की सेवा करते हैं और निष्कलंक ब्राह्मण जगत् के दुःख को दूर करने वाले तथा निर्दोष तलवार को धारण करने वाले उत्तम राजाओं की सेवा करते हैं । भावार्थ-जहां तालाब उत्तम राजा के समान थे क्योंकि जिस प्रकार तालाब जगतापनुदः-जगत् की गर्मी को दूर करते हैं उसीप्रकार उत्तम राजा भी जगत् के दारिद्रयजनित दुःख को दूर करते थे और जिस प्रकार तालाब विशुद्धतरवारि-अत्यंत विशुद्ध-निर्मल जल से युक्त होते हैं उसी प्रकार उत्तम राजा भी अत्यन्त विशुद्ध-दीन हीन जनों पर प्रहार न करने वाली तलवार से युक्त था । धवलद्विज-सफेदपक्षी अर्थात् हंस तालाबों की सेवा करते थे और धवलद्विज-निर्मल-निर्दोष ब्राह्मण उत्तम राजाओं की सेवा करते थे ॥७॥
जहां की नदियां कमलों की पराग से पीत वर्ण अतएव सुवर्ण रस के समान दिखने वाले हिमशीतल-बर्फ के समान शीतल जल को धारण करती हैं ।।८।। जहां विपल्लवतया हीनाःविपत्ति के अंश मात्र से रहित(पक्ष में पल्लवों के प्रभाव से रहित अर्थात् हरे भरे पल्लवों से सहित)पथिकों के द्वारा उपभुक्त फल श्री से सहित अर्थात् जिनकी लक्ष्मी-संपत्ति का उपभोग मार्ग चलने वाले पथिक भी करते थे ऐसे, ( पक्ष में जिनके फल पथिक खाया करते थे ) ऐसे, तथा मार्गस्थ-समीचीन आचार विचार में स्थित ( पक्ष में मार्ग में स्थित ) जन समूह और लताएं सुशोभित होती हैं ।।६।। जो देश परस्पर समानता रखने वाले पर्वतों और सज्जनों से अलंकृत है क्योंकि जिस प्रकार पर्वत तुङ्ग-ऊंचे होते हैं उसी प्रकार सज्जन भी तुङ्ग-उदार हृदय थे, जिस प्रकार पर्वत धवलताधार–धव के वृक्ष तथा लतानों-बेलों के आधार होते हैं उसी प्रकार सज्जन भी धवलताधार-धवलता-उज्ज्वलता के आधार थे । जिसप्रकार पर्वत अन्तःसरल वृत्ति-भीतर देवदारु के वृक्षों के सद्भाव से सहित होते हैं
१ सत इव वृत्त सद्वृत्त-सज्जनाचार: २ पद्माकर पक्षे विशुद्धतरं निर्मलतरं वारि जलं येषां ते, सुभूपपक्षे विशुद्धा निर्दोषाः तर वारयः कृपाणा येषां ते ३ हंसः, निर्मलब्राह्मणः ४ विपदां लवा विपल्लवास्तेषां भाव: विपल्लवता तया हीना जनता । लतापक्षे विगतकिसलयतया हीना: सपल्लवा इत्यर्थः ५ लताः ६ उन्नतः, उदार। ७ महीध्रपक्षे धवाश्च वृक्ष विशेषाश्च लताश्चेति षवलतास्तासामाधारैः सुजनपक्षे धवलतायाः शुक्लतायानिर्मलताया आधारा स्तैः ८ महीध्रपक्षे अन्तः मध्ये सरलाना देव दारु वृक्षाणां वृत्तिः सद्भावो येषु तैः । सुजन-पक्षे अन्तः सरला अकुटिला वृत्तिर्येषां तैः । महाप्राणिभिः पक्षे महापराक्रमः ।
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