Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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१२
श्रीशान्तिनाथपुराणम् तमन्वबुद्रवद्विद्या जिघांसुर्भीमविग्रहा । स भूपः खेचरेन्द्रोऽपि तरसा सह सैनिकः ॥७॥ प्रपश्यन्मपरं किश्चिद्रक्षोपायमथात्मनः' । शलं गजध्वजं प्रापन्नासिक्यनगराबहिः ॥८॥
* शार्दूल विक्रीडितम् 8 तत्रानन्तचतुष्टयेन सहितं भव्यात्मनां तं हितं
__भक्त्या केवलिनं प्रणम्य परमा सद्यो विशुद्धाशयः। नासौ केवलमम्बरेचरपतेारशक्तेस्ततः
संसारादपि निर्भयो भगवतस्तस्य प्रमावादभूत् ।।६॥ निबन्धादचिराय खेचरपतिस्तन्मार्गलग्नस्तदा
दृष्ट्वा लाङ्गलिनं तुतोष सहसा साधं नरेन्द्रेण सः । पाषाणाथितया वजन्मरिणमिव प्राप्यान्तरा' मास्वरै
बुद्ध संपवमूच्च तस्य कृपयालङ्कारितेवामला ॥१०॥ इत्यसगकृतौ शान्तिपुराणेऽच्युतेन्द्रस्य खेचरेन्द्रप्रतिबोधने अमिततेजःश्रीविजययोः सुताराव्यतिकरो नाम
* सप्तमः सर्ग: *
विद्याधर राजा भी सैनिकों के साथ वेग से उसके पीछे दौड़ा ॥१७॥ जब उसने अपनी रक्षा का दूसरा उपाय नहीं देखा तब वह नासिक्य नगर के बाहर स्थित 'गजध्वज पर्वत पर जा पहुंचा ॥१८॥
वहां अनन्त चतुष्टय से सहित तथा भव्य जीवों के हितकारक केवली भगवान् को परम भक्ति से नमस्कार कर वह शीघ्र ही विशुद्ध हृदय हो गया। उन भगवान् के प्रभाव से वह न केवल दुर्वार शक्ति के धारक विद्याधर राजा से निर्भय हुआ किंतु संसार से भी निर्भय हो गया ॥६६॥ जो विद्याधर राजा चिरकाल से आग्रह पूर्वक उनके मार्ग में लग रहा था वह, राजा भी श्रीविजय के साथ बलभद्र को देख कर शीघ्र ही संतुष्ट हो गया । जिस प्रकार पाषाण प्राप्त करने की इच्छा से घूमने वाला मनष्य बीच में देदीप्यमान मणि को प्राप्त कर प्रसन्न हो जाता है उसी प्रकार बीच में ही बलभद्र को प्राप्त कर विद्याधर राजा की बुद्धिरूप संपदा उन केवली भगवान् की दया से अलंकृत हुई के समान निर्मल हो गयी ॥४२॥
इसप्रकार महा कवि असग द्वारा विरचित शान्तिपुराण में अच्युतेन्द्र का विद्याधर राजा को संबोधन देना तथा अमिततेज, श्रीविजय और सुतारा का वर्णन करने वाला सातवां सर्ग पूर्ण हुआ ॥७॥
१ स्वस्य २ गजपन्थानामधेयं ३ मध्ये । १. यह पर्वत आजकल नासिक शहर से बाहर स्थित है तथा गजपंथा नाम से प्रसिद्ध है।
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