Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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नवमः सर्गः
अथ जम्बूद्माङ्कोऽस्ति द्वीपो यद्वनवेदिकाम् । प्रियामिव समाश्लिष्य राजते लवणोदधिः ॥१॥ तत्र पूर्वविदेहेषु सीतादक्षिणरोधसि । देशो नाम्नास्ति पर्याप्तमङ्गलो मङ्गलावती ॥२॥ असंजातमदा भद्रा भूरिभोगाः सकर्णकाः। मनुजा यत्र भास्वन्तो बिभ्रते सकलाः कलाः ॥३॥ पादिमध्यावसानेषु विभिन्नरसवृत्तिषु । यत्रेक्षुष्वेव दौर्जन्यं लक्ष्यते भङ गुरात्मसु ॥४॥ अन्योन्यस्पर्ट येवोच्चर्यस्मिन्सन्तश्च पादपाः । उन्नमन्ति फलाभावे नमन्ति फलसंचये ॥५॥
नवम सर्ग
__ अथानन्तर जम्बु वृक्ष से युक्त जम्बूद्वीप है जिसकी वज्रमय वेदिका को प्रिया के समान आलिङ्गित लवण समुद्र सुशोभित हो रहा है ॥१॥ उस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के दक्षिणतट पर मङ्गलों से परिपूर्ण मङ्गलावती नामका देश है ॥२॥ जहां पर गर्व से रहित, भद्र परिणामी, बहुत भारी भोगों से सहित, सावधान मनुष्य सुशोभित होते हुए समस्त कलाओं को धारण करते हैं ॥३॥ जहां यदि दुर्जनता देखी जाती थी तो आदि मध्य और अन्त में विभिन्न रस को धारण करने वाली विनाशीक ईखों में ही देखी जाती थी वहां के मनुष्यों में नहीं, क्योंकि वहां के मनुष्यों में कार्य के प्रारम्भ मध्य और अन्त में एक समान रस-स्नेह रहता था तथा सबकी प्रीति अभंगुर स्थायी रहती थी ॥४॥ जिस देश में सज्जन और वृक्ष परस्पर की बहुत भारी ईर्ष्या से ही मानो फलों के अभाव में उन्नत होते हैं और फलों के संचय में नम्रीभूत होते हैं। भावार्थ-जिस प्रकार वृक्ष फल टूट जाने पर भार कम हो जाने से ऊपर उठ जाते हैं और फलों के रहते हुए उनके भार से नीचे की ओर झुक जाते हैं उसी प्रकार सज्जन कार्य के समाप्त होने पर ऊपर उठ जाते हैं और कार्यों का संचय रहते नम्रीभूत रहते हैं । अथवा जिस प्रकार फल रहित वृक्ष ऊंचे होते हैं उसी प्रकार गुण रहित मनुष्य अहंकार करते हुए अपने आप को उच्च अनुभव करते हैं और गुणवान् मनुष्य विनय से नम्रीभूत रहते हैं ॥५।। जहां पर सुन्दर स्त्रियां शरद् ऋतु की रात्रियों के समान सुशोभित होती हैं । क्योंकि जिस प्रकार शरद् ऋतु की रात्रियां चारुताराम्बरोपेता:-सुन्दर नक्षत्रों
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