Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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श्री शान्तिनाथपुराणम्
सदाननातिरिक्तेन तावन्योन्यस्य दम्पती । प्रेम्णाजीहरतां चित्तं समसस्वरसस्थिती ॥ ३८ ॥ feereyear प्रतोद्रोऽसौ ततः पुत्रस्तयोरभूत् । सहलायुध इत्याख्यां दधानो दिक्षु विश्रुताम् ||३६|| कान्तं सप्तशतं चान्यदग्रहो दवरोधनम् । दिशन्त कुप्यर्माभिभ्यः स विद्वत्प्रवरो धनम् ॥४०॥ प्रथागात्तं महाराजं राजराजोपशोभितम् । सेवितुं वा 'मधुः काले कोकिलालापसूचितः ॥ ४१ ॥ ferer: कुसुमैः कीर्णा दूरतोऽधिवनस्थलम् । कामसेनानिवेशस्य धातुदृष्या इवाबभुः ॥ ४२ ॥ भृङ्गालीवेष्टितं रेजुश्चूता नूतनतोमरैः । तोमरंरिव "पुष्पेषोः कामिनां हृदयङ्गमः ||४३|| कनानु 'लाक्षारचो वीक्ष्य रक्ताशोकस्य पल्लवान् । का न यातिस्म पान्यस्त्री 'रक्ता शोकस्य घामताम् ॥४४॥ उत्फुल्लास्रवनेषूच्चवि रेसुः कोकिला: कलम् । कन्तोस्त्रिजगतां जेतुर्माङ्गल्यपटहा इव ॥ ४५ ॥ । वकुलप्रसवामोबिमधुमत्तैर्मधुव्रतैः ' 1 मधोरिव परा कीतिरस्पष्टाक्षरमुज्जगे ॥ ४६ ॥ | वस्याविव वनान्तेषु जृम्भमाणे मधौ पुरः । पान्थेः "स्त्रीहृदयैः कैश्चिद् व्यावर्त्यार्द्ध पथाद्गतम् ।।४७।।
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समान रूप से सत्त्वरस की स्थिति थी ऐसे वे दोनों दम्पती सदा न्यूनाधिक न होने वाले प्रेम से परस्पर एक दूसरे के चित्त को हरते रहते थे || ३८ ॥
तदनन्तर वह प्रतीन्द्र स्वर्ग से च्युत होकर उन दोनों के दिशाओं में प्रसिद्ध सहस्रायुध नाम को धारण करने वाला पुत्र हुआ || ३६ || याचकों के लिए सुवर्णरजतरूप धन को देने वाले उस श्रेष्ठ विद्वान् सहस्रायुध ने सातसौ अन्य सुन्दर स्त्रियों को ग्रहण किया ||४०|| तदनन्तर कोकिलाओं की मधुर कूक से जिसकी सूचना मिल रही थी ऐसी वसन्त ऋतु या पहुंची। वह वसन्त ऋतु ऐसी जान पड़ती थी मानो राजाधिराजों से सुशोभित उन महाराज की सेवा करने के लिए ही आयी हो ॥। ४१॥ वन भूमि में दूर दूर तक फैले हुए फूलों से व्याप्त पलाश के वृक्ष ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानों कामदेव की छावनी के गेरु से रंगे हुए तम्बू ही हों ||४२ ॥ भ्रमरावली से वेष्टित आम के वृक्ष नवीन मौरों से ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो कामी मनुष्यों के हृदय में लगने वाले कामदेव के तोमर नामक विशिष्ट शस्त्रों से ही सुशोभित हो रहे हों ||४३|| लाल अशोक वृक्ष के लाख के समान कान्ति वाले सुन्दर पल्लवों को देखकर अनुराग से भरी कौन पथिक स्त्री शोक स्थान को प्राप्त नहीं हुई थी ? ||४४ || खिले हुए आम के वनों में कोकिलाएं जोर जोर से मनोहर शब्द कर रही थी । उनके वे मनोहर शब्द ऐसे जान पड़ते थे मानों तीनों लोकों को जीतने वाले कामदेव के मङ्गलमय नगाड़े ही बज रहे हों ।। ४५ ।। मौलश्री के फूलों की सुगन्धित मधु से मत्त भौंरे मानों वसन्त ऋतु की उत्कृष्ट कीर्ति को कुछ अस्पष्ट शब्दों में गा रहे थे ।। ४६ ।। वन भूमि में जब वसन्त चौर के समान आगे आगे घूम रहा था तब स्त्रियों के प्रेमी कितने ही पथिक अर्धमार्ग से लौट कर चले गये थे ||४७ || खिले हुए
१ वसन्तः ५ कामस्य ६ रक्तवर्णान् हृदयं येषां तैः ।
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२ गैरिकरङ्गरक्तपटगृहाणीव
७ अनुरागयुक्ता ८ शब्दं चक्रुः ६ कामस्य
३ नवीन मज्जरीभि:
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४ शस्त्रविशेषैरिव
११ स्त्रीषु
१० भ्रमरः
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