Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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श्रीशान्तिनाथपुराणम्
परार्थाय जातातिविशदात्मनः ||८||
भूषितात्युद्धवंशस्य यस्य मुक्तामणेरिव । जन्मवत्ता दयार्द्रहृदयोऽराजनिरीक्ष्योऽपि तेजसा 1 श्रन्तधुं तसमग्रेन्दुरं शुमालीव योऽपरः ॥ ६ ॥ निवासोऽपि न जातु जल संगतः । योऽभूत्कुलप्रदीपोऽपि प्रवृद्ध' सुवशान्वितः ॥ १० ॥ अवधि रिनामेकः प्रादुर्भू बाम लावधि : " । यो बजार भुवो भारं 'दनोऽपि गुरुणा समम् ॥ ११ ॥ सदा विकासिनी यस्य सहजैव कृपाऽभवत् । सुमनः कल्पवृक्षस्य यथेच्छफलदायिनः ।।१२।। तस्यैव भूभृतः पुत्रः पश्चात्कान्तप्रभोऽप्यभूत् । प्रीतिमत्यां' 'गुरुप्रीत्या दृढो दृढरथाख्यया ॥ १३ ॥ १० कृतकेत र सौहार्दद्रवार्द्रीकृतमानसः । जातो मेघरथस्तस्मिन्प्राक्सम्बन्धो हि तादृशः || १४ || विधिनोपायत ज्यायान्प्रिय मित्रां' 'प्रियंवदाम् १२ । मनोरमतया मान्यामन्यामपि मनोरमाम् ॥ १५ ॥ परास्वपि कान्तासु सतीषु सुमतिः प्रिया । श्रासीत्कानिष्ठिकेयस्य' रोहिणीव कलावतः ५ ॥ १६ ॥
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भावार्थ – वह शैशव काल में ही वृद्ध के समान तत्त्ववेत्ता, धैर्यवान् तथा विनयवान् था ॥ ७॥ जिस प्रकार श्रेष्ठ वंश वृक्ष को विभूषित करने वाले प्रतिशय उज्ज्वल मुक्तामरिण का जन्म परोपकार के लिए होता है उसी प्रकार श्र ेष्ठ कुल को भूषित करने वाले निर्मल हृदय मेघरथ का जन्म परोपकार के लिये ॥ ८ ॥ यद्यपि तेज के द्वारा उसकी ओर देखना कठिन था तो भी वह दया से प्रार्द्र हृदय थापरम दयालु था। वह ऐसा जान पड़ता था मानों अपने भीतर पूर्ण चन्द्रमा को धारण करने वाला दूसरा सूर्य ही हो ||६|| जो लक्ष्मी का निवासभूत कमल होकर भी कभी जल से संगत नहीं था ( परिहार पक्ष में जड़ —- मूर्खजनों से संगत नहीं था ) तथा कुल का श्र ेष्ठ दीपक होकर भी प्रवृद्ध सुदशान्वित -बढ़ी हुई - बुझी हुई उत्तम बत्ती से सहित था ( परिहारपक्ष में श्र ेष्ठ वृद्धजन की उत्तम अवस्था से सहित था । ) भावार्थ - वह लक्ष्मीमान् था, मूर्खजनों की संगति से दूर रहता था, कुल को प्रकाशित करने वाला था तथा वृद्ध के समान गम्भीर और विनयी था ।। १० ।। जो गुरणवान् मनुष्यों की द्वितीय अवधि था अर्थात् जिससे बढ़कर दूसरा गुणवान् नहीं था और जिसे निर्मल अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ था ऐसा वह मेघरथ शरीर से कृश होता हुआ भी पिता के साथ पृथिवी का भार धारण करता था ।। ११ ।। विद्वज्जनों के लिए कल्पवृक्ष के समान यथेच्छ फल देने वाले जिस मेघरथ की सहज कृपा सदा विकसित रहती थी ||१२||
तदनन्तर उसी राजा घनरथ की दूसरी रानी प्रीतिमती के कान्तप्रभ भी बहुत भारी प्रीति से दृढ़ दृढरथ नामका पुत्र हुआ || १३ || मेघरथ, उस भाई पर स्वाभाविक स्नेह रस से आर्द्र हृदय रहता था सो ठीक ही है क्योंकि उनका पूर्वभव का सम्बन्ध वैसा ही था || १४ || बड़े पुत्र मेघरथ ने प्रियभाषिणी प्रियंवदा और मनोरम पने के कारण माननीय मनोरमा नाम की अन्य इस प्रकार दो कन्याओं को विधिपूर्वक विवाहा ।।१५।। छोटे भाई दृढरथ की यद्यपि और भी सुन्दर स्त्रियां थीं परन्तु उनमें सुमति नाम की स्त्री चन्द्रमा के रोहिणी के समान प्रिय थी ।। १६ ।। जिनके मुख कमल
१ लक्ष्मीनिवासभूतकमलमपिभूत्वा २ जलसंगत: पक्षे जडसंगत: ३ प्रवृद्धस्येव सुदशा शोभनावस्या तया अन्विता, पक्षे प्रवृद्धा वृद्धिगतानिर्वाणोमुदवा या सुदशा - शोभनवर्तिका तयान्वितः सहिता ४ सीमा ५ अवधिज्ञानं ६ कृशोऽपि ७ पिता सह ८ एतन्नामपत्न्याम् ९ श्रेष्ठस्नेहेन १० अकृत्रिम ११ एतन्नामधेयां १२ प्रिय
भाषिणीम्
१३ लक्ष्मीम्
१४ लघुपुत्रस्य दृढरथस्य
१५ चन्द्रमसः ।
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