Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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दशमः सर्गः
१२३ शुभकान्तेति नाम्ना मे धर्मपत्नी शुभाशया । प्रासीखेचरलोकराजलक्ष्मीरिवापरा ॥२८॥ उपादि सतस्तस्यां पुत्री पुत्रीयता' मया। इयं शान्तिमती नाम्ना धीरा धोराजितस्थितिः ।।२।। प्राप्ति साधयन्तीयंः मुनिसागरपर्वते । कामं कामयमानेन पर्यभाव्यमुना.: बलात् ॥३०॥ अस्याः सिद्धिमगाद्विधा धैर्यणेव विलोभिता। बीतकाम: स्वरक्षार्थो तत्क्षणायमप्यभूतः॥३१॥ 'जगत्प्रतीक्ष्य मालोच्य शरणं त्वां समासवत् । अतोऽनुगम्यमानोऽयमनयापि युयुत्सया ॥३२॥ प्रावाभोगिनी विद्या विज्ञायास्या व्यतिक्रियाम् । प्रहमप्यागमं क्रोधादप्रतीक्षितसमिकः ३३॥ वध्योऽपि पूज्य एवायं ममामूत्वत्समाधयात् । स्वामिनानुगृहीतस्य कुर्यात्को वा विमाननाम् ॥३४॥ इत्युक्त्वावसिते. स्मिस्तदुदन्तं प्रभखने । परावावधि राजा तत्प्राक्सम्बन्धमैक्षत ॥३५।। उवाचेति: ततः सम्यान्स्ववस्त्रनिहितेक्षणान् । वोक्षतामीदृशीं जन्तोः प्राग्भवप्रेमवासनाम् ॥३६।। अस्य जम्बूद्मास्यद्वीपस्थरावताहये। वर्षऽस्ति विषयो नाम्ना गान्धारोऽम्बुपरस्थितिः ॥३७॥
शुभ अभिप्राय वाली है तथा ऐसी जान पड़ती है मानों विद्याधर लोक की दूसरी ही राज लक्ष्मी है ॥२८॥ सन्तान की इच्छा रखते हुए मैंने उसमें यह शान्तिमती नामकी पुत्री उत्पन्न की है । यह पुत्री अत्यन्त धीरगम्भीर और बुद्धि से सुशोभित स्थिति वाली है ॥२६॥ यह पुत्री मुनिसागर पर्वत पर प्रज्ञप्ति नामकी विद्या सिद्ध कर रही थी परन्त काम की इच्छा करने वाले इस परुष ने बल पूर्वक इ परिभूत किया ॥३०॥ इसके धैर्य से ही मानों लुभाकर विद्या सिद्धि को प्राप्त हो गयी। विद्या सिद्ध होते ही यह काम को भूल गया और अपनी रक्षा का इच्छुक हो गया। भावार्थ-हमारे प्राण कैसे बचें इस चिन्ता में पड़ गया ॥३१॥
तदनन्तर युद्ध की इच्छा से इस कन्या ने इसका पीछा किया। भागता हुआ यह जगत्पूज्य आपको देखकर आपकी शरण में आया है ।।३२॥ आभोगिनी विद्या की पावृत्ति कर अर्थात् उसके माध्यम से जब मुझे इसकी इस पराभूति का पता चला तब मैं भी क्रोध से सैनिकों की प्रतीक्षा न कर आ गया हूं ।।३३।। यद्यपि यह हमारा वध्य है-मारने के योग्य है तो भी आपकी शरण में आने से पूज्य ही हो गया है क्योंकि स्वामी के द्वारा अनुगृहीत पुरुष का अनादर कौन कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं ॥३४।। इस प्रकार उसके वृत्तान्त को कहकर जब प्रभञ्जन चुप हो गया तब राजा ने अवधिज्ञान को परिवर्तित कर अर्थात् उस ओर उसका लक्ष्य कर उनके पूर्वभव को देखा ।।३।।
__ तदनन्तर अपने मुख पर जिनके नेत्र लग रहे थे ऐसे सभासदों से राजा ने इस प्रकार कहाअहो ! जीव को ऐसी पूर्वभवसम्बन्धी प्रेम की वासना को देखो ॥३६।। जम्बू वृक्ष से युक्त इस जम्बू द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में गान्धार नाम का एक ऐसा देश है जहां मेघ सदा विद्यमान रहते हैं ॥३७॥
१ आत्मनः पुत्रमिच्छता २ धिया बुद्धया राजिता शोभिता स्थितिर्यस्या! सा . ३ एतन्नामधेयपर्वते ४ कामयते इति कामयमानः तेन ५ जगत्पूज्यम् ६ योद्ध मिच्छया ७ अनादरम् . ८ तूष्णीभूते सति ९.देशः । :
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