Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
View full book text
________________
श्रीशान्तिनाथपुराणम् शुद्धारमा गिरिनन्दने शिखरिणि 'स्वाराषिताराधनः
त्यक्त्वा स्वं वपुरच्युतां दिवमथ प्राप्य प्रतीन्द्रोऽभवत् । सत्संपत् स परोपकारिचरितं वीक्ष्याच्यतेन्द्र यथा भूयः सौल्यमियाय तत्र न तथा दिव्याङ्गनानाटकम् ॥१३॥ इत्यसगकृतौ शान्तिपुराणे खेचरेन्द्रस्य मेघनावस्या
च्युतप्रतीन्द्रसंभवो नामाष्टमः सर्गः
चिन्तवन करते थे, जो कठिनाई से निवारण करने योग्य परिषहों के समान सुन्दर कण्ठ के शत्रु द्वारा किए हुए भारी उपसर्गों को क्षमा के द्वारा कुण्ठित करके स्थित थे तथा जिन्होंने समीचीन आगम को कण्ठस्थ किया था ऐसे वे मेघनाद मुनि सुशोभित हो रहे थे ।।१८२।। जिनकी आत्मा शुद्ध थी और जिन्होंने गिरिनन्दन पर्वत पर अच्छी तरह अाराधनाओं का आराधन किया था। ऐसे वे मेघनाद मुनि अपना शरीर छोड़कर अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुए। समीचीन संपत्ति से सहित वह प्रतीन्द्र वहां परोपकारी अच्युतेन्द्र को देख कर जिसप्रकार अत्यधिक सुख को प्राप्त हुआ था उस प्रकार देवाङ्गनाओं का नाटक देखकर नहीं हुआ था ॥१८३॥
इस प्रकार महाकवि असग द्वारा विरचित शान्तिपुराण में विद्याधरराजा मेघनाद का अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र होने का वर्णन करने वाला अष्टम सर्ग समाप्त हुआ ।।८।।
१ शोभनप्रकारेण आराधिता आराधना ये न स:।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org