Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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चतुर्थ रुगं
३७ प्रतो न पदमप्येकं यास्यामि परतो 'नगात् । प्रस्मादिति प्रतिज्ञाय स्थितो युद्धाभिलाषुकः ||६|| इत्येतावद्भूयात्किश्विदन्तः स्खलितया गिरा । श्रव्यक्तमिव तद्वात व्याहृत्योपशशाम सः ||१०॥ ततः शत्रो रणोद्योगं "निकारमपि तत्कृतम् । उ सौविदल्लमुखाद्राजा श्रुत्वान्तः कुपितोऽभवत् ॥ ११॥ starक्रम्य धैर्येण प्रस्तावजमपि प्रभुः । इत्युवाच ततः सभ्यान्पश्यन्वीरान्समन्ततः ।। १२ ।। नाङ्गीकरोति यः कश्चित्प्राकृतोऽपि पराभवम् । ईदृशस्य समं ब्रूत यत्कर्तव्यं तदत्र नः ।। १३ ।। एक एवाथ किं गत्वा हनिष्यामि तमुन्मदम् । कुतश्चिदीदृशं वाक्यं मया ब्रूत यदि श्रुतम् ।। १४ ।। श्रवज्ञाविजितानेका नेकपे यूथनायके । निहते हरिणाक्रम्य पोता " कमनुयास्यति ॥ १५॥ तं पारश्वधिकेनापि दूरादेकेन केनचित् । दारयिष्याम्युत स्तब्धं सानुजं खदिरं यथा ।। ६ ।। दमिताराविति क्रोधादुदीर्य विरते गिरम् । प्रचचाल 'तदास्थानी वेलेव प्रलयोदधेः ।। १७ ।। ततः कश्चित्कषायाक्षः क्रुद्धो वष्टाधरस्तदा । प्राहतोच्चः स्वमेवांसं वामं दक्षिणपाणिना || १८ ||
समान सत्पुरुषों का युद्ध क्या अकारण ही होता है ? ||८|| इस पर्वत से श्रागे में एक पद भी नहीं जाऊंगा ऐसी प्रतिज्ञा कर युद्ध की इच्छा करता हुप्रा खड़ा है || ६ || इसप्रकार भय से भीतर कुछ कुछ स्खलित होने वाली वाणी के द्वारा प्रस्पष्ट रूप से उसका समाचार कह कर वह वृद्ध कञ्चुकी शान्त हो गया ||१०||
तदनन्तर राजा दमितारि कञ्चुकी के मुख से शत्रु के रण सम्बन्धी उद्योग और उसके द्वारा किये हुए पराभव को सुन कर हृदय में कुपित हुआ ||११|| तत्पश्चात् इस उत्पन्न हुआ था तथापि उसे धैर्य से दबा कर वीर सभासदों को चारों प्रोर
अवसर से यद्यपि कोष देखते हुए दमितारि ने
इस प्रकार कहा ॥१२॥
जो कोई साधारण मनुष्य है वह भी ऐसे व्यक्ति के पराभव को स्वीकृत नहीं करता है इसलिए इस संदर्भ में हम लोगों का जो कर्तव्य है उसे आप एक साथ कहिये ।।१३।। अथवा कहने से क्या ? मैं अकेला ही जाकर उस अभिमानी को मार डालूंगा। किसी से यदि ऐसा वाक्य मैंने सुना हो तो कहो ।। १४ ।। श्रनादर पूर्वक अनेक हाथियों को जीतने वाला झुण्ड का नायक गजराज जब सिंह द्वारा श्राक्रमण कर मार डाला जाता है तब बालक हाथी किसके पीछे जायगा ? ।।१५।। अथवा किसी शिकारी के द्वारा भी दूर से भाई सहित उस अहंकारी को उसप्रकार विदीर्ण करा दूंगा जिसप्रकार कि खदिर वृक्ष को विदीर्ण कर दिया जाता है ।। १६ ।। क्रोध से इस प्रकार के शब्द कह कर जब दमितारि चुप हो गया तब सभा प्रलय कालीन समुद्र की वेला के समान क्षुभित हो उठी ॥ १७ ॥
तदनन्तर जिसके नेत्र लाल लाल हो रहे थे, जो अत्यन्त कुपित था और प्रोंठ को डस रहा था ऐसा कोई वीर दाहिने हाथ से अपने ही बाएं कन्धे को जोर जोर से ताबित करने लगा ।। १६ ।। एक
१ विजयार्धगिरेः २ पराभवम् ३ कञ्चुकीबदनात् अवसरोत्पन्नमपि ५ साधारणोऽपि जन: ६ अवज्ञया विजिना अनेके बहवोऽनेकपा हस्तिनो येन तस्मिन् ७ डिम्भः बालक इत्यर्थः ८ सभा ।
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