Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
View full book text
________________
५२
श्रीशांतिनाथपुराणम् श्रवणौ निश्चलीकृत्य किञ्चिदाकूरिणतेक्षणः । सेनाकोलाहलं शृण्वन्नन्तगर्जन्मुहुर्मुहुः ॥४५॥ स्वाङ्गषु पतितान्बाणान्हस्तेनोद्धृत्य लोलया। इतस्तत: क्षिपन् कुर्वस्त्रिपदीविभ्रमस्थिति ॥४६।। इति धोरं गजस्तिष्ठन्प्रतीक्ष्या'रूढचोदनाम् । भद्रत्व प्रथयामास जातेः शोलस्य चात्मनः ॥४७॥
(त्रिभिविशेषकम् ) क्वचिद्भग्नरपान्तःस्थवरणातुरमहारथम् । अन्यत्र पतितानेकक्षीवनागनगाकुलम् ।।४।। क्वचित्पतितपादातैयिकदेव केवलैः । स्थितं प्रविचितं कैश्चिद्भग्नशाख रिव दुमैः ।।४।। क्वबिच्छून्यासनानेकहयहेषात्तदिङ मुखम् । सवंशः पतितः कोणं क्वचिद्वीरेश्च केतुभिः ।।५०।। विश्रान्तशालिकोद्देशं भूयमारणशिवारुतम् । क्वचिदन्यत्र नृत्यद्भिः 'कबन्धैः संहृतान्तरम् ॥५॥ तदेकेन समाक्रान्तमित्यभूत्तद्ररणाजिरम् । 'दैवं जयश्रियो हेतुर्न सामग्री महत्यपि ।।५२।।
पञ्चभिः कुलकम् ततस्तेन हते सैन्ये सेनानी रणवपितः । चित्रानीक इति ख्यातो दागाह्वास्ताहवाय तम् ॥५३॥
डाला और अपनी सेना को चूर चूर कर दिया सो ठीक ही है कि मदान्ध प्राणी की वही चेष्टा है ॥४४॥ कानों को निश्चल कर जिसने नेत्रों को कुछ कुछ संकोचित कर लिया था, सेना का कोलाहल सुन कर जो बार बार भीतर ही भीतर गरज रहा था और जो अपने अंगों पर पड़े हुए वाणों को सूड से निकाल कर लीला पूर्वक इधर उधर फेंक रहा था ऐसा धीरता पूर्वक खड़ा हुआ हाथी, सवार की प्रेरणा की प्रतीक्षा कर अपनी जाति और शील की भद्रता को प्रकट कर रहा ॥४५-४७।।
वह रणाङ्गण कहीं तो टूटे रथ के भीतर स्थित घावों से पीड़ित महारथियों से युक्त था। कहीं पड़े हुए अनेक उन्मत्त हाथी रूपी पर्वतों से व्याप्त था। कहीं जिनके सैनिक मारे गये हैं ऐसे मात्र स्वामियों से युक्त था और उनसे ऐसा जान पड़ता मानों शाखा रहित वृक्षों से ही व्याप्त हो । कहीं घुड सवारों से रहित अनेक घोड़ों की हिनहिनाहट से युक्त दिशाओं से सहित था । कहीं गिरे हुए सदवंश-उच्चकुलीन पक्ष में वांसों से . सहित वीरों तथा ध्वजों से व्याप्त था। कहीं जहाँ शङ्ख बजाने वालों का उद्देश समाप्त हो गया था ऐसा था। कहीं सुनाई देने वाले शृगालियों के शब्द से यक्त था और कहीं नाचते-उछलते हए कबन्धों-शिर रहित धडों से जिसका अन्तर समाप्त हो गया था ऐसा था । इसप्रकार उस एक के द्वारा अक्रान्त रणाङ्गण ऐसा हो गया था सो ठीक ही है क्योंकि विजय लक्ष्मी का हेतु भाग्य ही है बहुत भारी सामग्री नहीं ॥४८-५२।।
तदनन्तर अपराजित के द्वारा सेना के मारे जाने पर युद्ध के अहंकार से युक्त चित्रानीक नाम से प्रसिद्ध सेनापति ने शीघ्र ही युद्ध के लिये उसे बुलाया ।।५३।। महात्मा अपराजित अन्य को छोड़कर चित्रानीक सेनापति के आगे उस प्रकार खड़ा हो गया जिस प्रकार सिंह झुण्ड को छोड़कर
१ आरूढम्य चोदनां प्रेरणा २ गजगिरिव्याप्तम् ३ सत्कुलैः विद्यमानबेणुभिः ४ श्रूयमारणशृगाली शब्दम् ५ शिरोरहितनरकलेवरः ६ भाग्यम् ७ चित्रानीकनामा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org