Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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( ३३ ) पूर्वोक्त अच्युतेन्द्र स्वर्ग से चयकर कनक चित्रादेवी के गर्भ से वज्रायुध २२-४. । १०३-१०६
नामका पुत्र हुआ । वज्रायुध बड़ा सुन्दर और बलवान् था। राजा क्षेमंकर ने वज्रायुध को युवराज बनाया। वज्रायुध ने लक्ष्मी मति कन्या के साथ विवाह किया। मेघनाद का जीव जो अच्युतस्वर्ग में प्रतीन्द्र हुअा था, वहां से चय कर वज्रायुध और लक्ष्मीमति के सहस्रायुध नामका पुत्र हुआ । सहस्रायुध ने सातसौ कन्याओं के साथ
विवाह किया। इतने में वसन्त ऋतु पा गई उसका साहित्यक वर्णन ।
४१-७० । १०६-१.६ वसन्त ऋतु में वन क्रीडा करने के लिये सहस्रायुध अपने अन्तःपुर के साथ ७१-८८ । १०६-१११
देवरमण वन को गया। वहां वन क्रीडा के अनन्तर वह जल क्रीडा के लिये वापिका में उतरा । स्त्रियों के साथ जब वह जलकेलि कर रहा था तब पूर्व भव के वैरी विद्य दंष्ट्र ने आकाश मार्ग से जाते हुए उसे देखा। क्रोध वश उसने उसे नागपाश से बांध दिया
और वापिका को शिला से ढक दिया परन्तु सहस्रायुध ने अंगड़ाई लेकर नागपाशों को तोड़ दिया और बांयें हाथ से शिला को अलग कर दिया। भावी चक्रवर्ती के वीर्य और साहस को देखकर वह देव भाग गया।
सहस्रायुध की कीर्ति सर्वत्र फैल गई। नगरवासियों ने उसका अत्यधिक ८९-१०० । १११-११२
सत्कार किया इसी के बीच क्षेमङ्कर महाराज संसार से विरक्त हो उठे जिससे उन्हें संबोधने के लिये लौकान्तिक देव आये। युवराज वज्रायुध ने पिता का सिंहासन प्राप्त किया । क्षेमकर महाराज ने दीक्षा कल्याणक का अनुभव कर उसी नगर के उद्यान में दीक्षा
धारण कर ली। वज्रायुध शान्ति से राज्य संचालन करने लगे।
१०१-१०५ । ११२-११३ तदनन्तर विवाद की इच्छा रखने वाला कोई विद्वान् वजायुध की सभा १०६-१५८ । ११३-११६
में आया। वजायुध ने उसके प्रश्न सुन कर उनका युक्ति युक्त समाधान किया। वह विद्वान एक देव था परीक्षार्थ आया था। वायुध के पाण्डित्य से प्रसन्न होकर चला गया।
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