Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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(२८)
पञ्चम सर्ग चक्रवर्ती को अपरिमित सेना आगे बढ़ी आ रही थी। धूलि से आकाश भर १-६० । ४७-५६
गया था। सेना के योद्धा बहुत उछल कूद कर रहे थे पर ज्योंही अपराजित की गंभीर दृष्टि सेना पर पड़ी त्योंही उनकी उछल कूद बंद हो गई। सब सैनिक अपराजित पर प्रहार करने लगे परन्तु अपराजित ने इस वीरता से उनका सामना किया कि रणक्षेत्र मृतकों से भर गया। भगदड़ मच गई ! दमितारि के प्रमुख योद्धा महाबल ने भागते हुए सैनिकों का स्थिरीकरण किया परन्तु अपराजित के सामने कोई टिक नहीं सका। महाबल भी मारा गया ।
अन्त में चक्रवर्ती स्वयं युद्ध के लिये आगे आया । चक्रवर्ती को प्राता देख अनन्तवीर्य ने अपने अग्रज अपराजित से कहा कि ९१-११७ । ५६-५६
इसके साथ युद्ध करने की मुझे आज्ञा दीजिये । अपराजित की आज्ञा पाकर अनन्त वीर्य ने दमितारि के साथ युद्ध किया । अन्त में क्रुद्ध होकर दमितारि ने अनन्तवीर्य पर चक्ररत्न चलाया परन्तु वह चकरत्न प्रदक्षिणा देकर अनन्तवीर्य के दक्षिण कंधे को अलंकृत करने लगा। उसी चक्ररत्न से दमितारि मारा गया । विजय लक्ष्मी से सुशोभित अनन्तवीर्य का आलिङ्गन कर अपराजित ने बड़ा हर्ष प्रकट किया। अपराजित बलभद्र और अनन्तवीर्य नारायण के रूप में उदघोषित हुए।
षष्ठ सर्ग तदनन्तर बलभद्र अपराजित ने पिता के मरण सम्बन्धी शोक और लोकाप १-४ । ६.
वाद से संतप्त कनकधी को सान्त्वना देकर दमितारि का अन्तिम संस्कार किया और भयभीत अवशिष्ट विद्याधरों को अभयदान दिया।
पश्चात् अपराजित ने भाई अनन्तवीर्य और चक्रवर्ती की पुत्री कनकधी के ५-१२ । ६०-६१
साथ विमान में आरूढ हो अपने नगरकी ओर प्रस्थान किया। बीच में विमान अकस्मात् रुक गया। जब अपराजित ने नीचे आकर विमान के रुकने का कारण जानना चाहा तब भूतरमण अटवी के
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