Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 14
________________ (xii) का परिवर्तन करने के लिए ब्रेनवाशिंग (Brain washing) का प्रयोग किया जा रहा है तथा सजेस्टोलोजी के प्रयोग काम में लिए जा रहे हैं। मन की मूर्छा तोड़ने वाले विषयों का अनुचिन्तन करना अनुप्रेक्षा है और स्वयं को अनुप्रेक्षा से बार-बार भावित करना भावना है। साधना-जगत् में यह पद्धति कांटे से कांटा निकालने की है। जब तक मूढता का वलय नहीं टूटता तब तक यथार्थता प्रकट हो नहीं पाती, सचाई भीतर ही भीतर आवृत रह जाती है। अनुप्रेक्षा उस सचाई को प्रकट करने का एक साधन है। यथार्थता की ज्योति, जो मूर्छा की राख से ढंकी हुई है, उसे अनावृत करने का एक माध्यम है अनुप्रेक्षा। _ वि.सं. २०३९, सन् १९८२। राणावास में चतुर्मास की घोषणा। आचार्य तुलसी (गणाधिपति तुलसी) लाडनूं में महावीर जयन्ती संपन्न कर चतुर्मास हेतु राणावास की ओर प्रस्थित हो गए। युवाचार्य महाप्रज्ञ (आचार्य महाप्रज्ञ) कुछ आवश्यक कारणों से कुछ समय के लिए जैन विश्व भारती, लाडनूं में रुके। तदनन्तर आपका प्रस्थान भी राणावास की ओर हो गया। कुछ दिनों से मेरे मन में एक प्रेरणा थी कि मैं 'शान्तसुधारस' काव्य को एक व्यवस्थित रूप दूं। मेरा वह स्वप्न अभी तक साकार नहीं हो पा रहा था। सहसा यात्रा का प्रसंग बना और सहज ही मुझे उस यात्रा के मध्य काम करने का अवसर प्राप्त हो गया। मैंने कुछ समय पूर्व ही 'श्रीभिक्षुशब्दानुशासनम्' महाव्याकरण का सम्पादन-कार्य पूरा किया था। अब मेरे पास अन्य ऐसा कोई काम नहीं था, जिसे मैं पदयात्रा में कर पाता। स्वयं के संस्कृत-विकास और आनन्दानुभूति के लिए मुझे यह उपक्रम अच्छा लगा। मैंने इस कार्य को प्रारम्भ कर दिया। "बिचाऊ' ग्राम में मैंने इस काव्य के प्रथम श्लोक को अनूदित कर नमूने के तौर पर युवाचार्य महाप्रज्ञ (आचार्यश्री महाप्रज्ञ) के चरणों में निवेदित किया। युवाचार्यवर का संकेत रहा कि अनुवाद ऐसा होना चाहिए, जो कोरा शाब्दिक भी न हो और कोरा भावानुवाद भी न हो। दोनों का समन्वित रूप ही अनुवाद को सुन्दर बना सकता है। जहां तक बन सका, मैंने उसी शैली का अन्त तक निर्वहन किया। मैं अपना प्रतिदिन का अनुवादकार्य कर युवाचार्यवर के चरणों में उपस्थित हो जाता। युवाचार्यश्री जहां संशोधन और परिमार्जन की अपेक्षा होती वहां परिवर्तन करा देते। कार्य के साथ-साथ मेरा उत्साह भी बढ़ता गया। कार्य कुछ आगे बढ़ा। अनुवाद की संगति और छंदोनुबद्धता को ध्यान में रखकर युवाचार्यप्रवर के निर्देशानुसार

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