Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 222
________________ $434-435 ).] श्री तरुणप्रभाचार्यकृत १४७ सूपकारे कीधा । राजा आगइ आणिया । राजेंद्र चीतविडं ' मधुरमोदक पूपकादिक भक्ष्यभेद पाछेई भावसि' इणि कारणि पहिलउं बाकुल ढोकलादिक भक्ष्यभेद भरवी करी पाछइ मधुराहार भक्षणु कीधउं । किसइ कारणि जिम 'सवहीं आहार तथा स्वाद लिउं ' । महंतइ' पुगि जीमी करी वमन विरेचनादिकु haraj | राजेंद्र पुणि सर्वाहार भोगलुब्धि हूंतइ वमनविरेचनादिकु न कीधउं । तिणि आहारदोषि राउ मूयउ । इहलोक सुख चूकउ । महामात्यु जीविउ । इहलोक सुखभागी हूयउ । तिम जीवु पुणि अन्यान्य धर्मतत्त्वबुद्धि करी वांछतर मोक्षसुख हूं' चूकइ । अवांछतउ मुक्तिसुखभागी हुयइ । इणि कारणि जिम लवण अनइ कर्पूर रहई, तिमिर अनद प्रकाश रहई, गोक्षीर अनइ अर्कक्षीर रहई, खल' अनइ गुल रहई समता न कीजई तिम शिवशर्मदायक' जिनधर्म अनइ जन्मजरामरणाद्यनंतपुरं तदुक्खदायक मिथ्यादृष्टि धर्म रहई समानता लक्षण आकांक्षा न कीजई । 5 15 (434) धर्मफल संदेह विषइ वणिय तस्कर बिहुं तणउं उदाहरणु। तथाहि वसंतपुर नामि नगरु 10 जिणदास नामि श्रावकु । तेह तणउ महेसरदत्तु नाभि मित्रु । जिणदासु आगासगामिणी' विद्या तणइ बलि नंदीश्वर द्वीप' शाश्वत चैत्य वांदिया गयउ । आविउ हूँउ महेसरदत्ति भणिउ, ' मित्र ताहरइ देहि अपूर्व सुगंधु' गंधा'। तिणि नंदीश्वर यात्रावृत्तांतु कहिउ । तउ महेसरदत्तु भणइ, 'मू रहई पुणि आकाशगामिनी विद्या आपि' । तर अतिनिर्बंधि कीधर हूंत जिणदासि' महेसरदत्त रहईं विद्या' दीधी । कृष्ण चतुर्दशी रात्रि समइ इमसानि' जाई, हेठइ अग्निकुंडु ज्वलइ, ऊपरि वृक्ष तणी शाखा छीकउं बांधी करी आपणप तिहां चडी करी विद्या जपइ । जापि संपूर्णि हूंतइ एक एक तणी खड्ग घाइ करी छेदइ । जेतीयार चउथी तणी छेदिवा वार हुयइ तेतीवार मन माहि संदेहु ऊपजइ ' विद्यासिद्धि होसिह किंवा नही होइ, पुण मू रहई मरणु निश्चई होइसिह' । तउ वलीवली छीकडं बांबइ वलीवली संदेहु करइ । एतलई' प्रस्तावि चोरु एकु चोरी करी तिहां आविउ । केडइ वाहर पुण" आवी । चोरु श्मशान वनगहन माहि पठउ । बाहर बाहिरि वेदु करी रही । चोरि महेसरदत्तु चडत ऊतरतउ देखी करी बोलाविउ ।' 'त जे " विद्या साधइ छइ स मू रहई आपि । एउ माहरउं धनु तॐ " लइ ' । तिणि चीतविडं, 'भलउ मू रहई एतला फल तणी प्राप्ति छई' इसउं भणी करी विद्या चोर रहई आपी, चोर तणउं धनु आपणपई लीघउं । चोरि निःसंदेह थिकइ एक बार रूडी परि जाप करी खड्ग नइ एक घाइ करी चियारह तणी छेदी करी" आकाशि ऊपरमिउ । प्रभाति चोर पगि लागी बाहर वन माहि आवी महेसर- 26 दत्तु वस्तुसंयुक्त चोरु करी बाधउ । मारिवा लीजतउ देखी करी चोरि आकाशगति विद्यागुरु भण नगर रहई बीहावी करी मेल्हाविउ । 20 इसी परि जु धर्मफल" विषइ संशउ करइ सु महेसरदत्त जिम अपाइ पडइ जु संशउ न करइ सु चोर जिम सकल अनर्थ हूंतउ छूटइ | मनोवांछित लहइ । (435) साधु जिंदा विषइ दुर्गंधा' उदाहरणु । मिथ्यादृष्टि प्रशंसा परिहार विषs सकटालु महामात्य उदाहरण | मिध्यादृष्टि संस्तवु' मिथ्यादृष्टि सउं मैत्री कहियइ । तेह विषइ जिणदासु उदाहरणु । यथा ऊजणी' नामि नगरी । जिणदासु नामि सुश्रावकु' । तिहां एकादशमी प्रतिमा वहतउ मुनि सरसउ विहार करत सार्थभ्रष्ट हूंतर बौद्धहं तणइ साथि मिलिउ । मार्गि मूयउ । आपणउ आचारु करी बौद्धे' 35 words between तउ...तउ...in 8434 ) 1. P. आकास - 1 2. P. दीपि 3. P. गंधु । 4. Bh. जिनि- 1 5. Pomits. 6. Bh. P. इमसानि । 7. P. शीकउ । 8. P. होइसिइ । 9. P. एतइ। 10. P. पुनि । 11. Bh. P. ज 12. P. तूं । 13. P. थकइ । 14. P. omits. 15. Bh. ऊपर। P. रूप मिउ ) 16. Bh. omits. 435 ) 1. दुर्गेछा । 2. P. स्तविषु । 3. P. उज्जेगी। 4. Bh. श्रावक्कु । 5. B. बौद्ध 433 ) 3. P. बाकुला । the margin 6. Bh. अवांछतु । Jain Education International 4. Bh. महत | 5. B. has added 7. P. खलि । S. Bh. शव- 1 30 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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