Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ २०५ $572-75). ८२४] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत चकारइतउ कामभोगाशंशा। तत्र शब्दरूप काम कहियई। गंध रस स्पर्श भोग कहियई। यथा। 'एह तप तणइ प्रभावि मू रहई पइलई भवि काम भोग मनोवांछित हाइजिउं।' इसी परि एउ पंचविधु ५ अतिचार मू रहई मरणंते जा चरमु ऊसासु तेतीही वार म होइजिउ ५॥ 8572) तत्र इह लोकशंशा विषइ चित्त तणउ भाई संभूतु मातंगऋषि दृष्टांतु । परलोकाशंशा विषइ अनामिका दृष्टांतु ललितांग देवदर्शनानुरागि जिणि नियाणउं देवी भाव विषद कीधउं । कामभोगाशंशा विषइ नर्दिषण कथा। 8573) जीविताशंशा' मरणाशंशा' विषइ धर्मघोष धर्मयश इसा नामहं करी प्रसिद्ध छई मह. ऋषि तीहं तणी कथा लिखियह ॥ ईही जि भरतक्षेत्र माहि कौशांबी नामि नगरी हूंती । तिहां अजितसेनु नामि राजा। धारिणी नामि राणी । अनेरइ वरसि बहुश्रुत गुणविश्रुत धर्मवसु इसई नामि आचार्य संजमगुण समाहित तिणि नगरी वृद्धावासि रहिया । तीहं तणा वि शिष्य एकु धर्मघोषु बीजउ धर्मयशु । बिहुं तीहं महासत्तहं 10 संलेखना करिवा' आरंभी । तिहां विगतभया इसइ नामि यथार्थनाम प्रवर्तिनी हूंती। तिणि संघु पूछी करी अणसणु लीधउं । चमत्कारकारिणी तेह रहई प्रभावना संघि करावी। तिणि देवलोकि । गई हूंती पुनरपि तेह तणा कलेवर रहइं सज्जनानंदकारिणी पूजा पौरजनहं करावी। सु पूजाडंबरु 15 देखी करी धर्मघोषु ऋषि मन माहि चीतवइ, 'धन्य धन्य ए प्रवर्तिनी । जह जीवतीही मृतही रहई इसी प्रभावना हुई। एह पुरी माहि किम हउं पुण' हवडा अण सणु करउ तउ मू रहई पुण इसी प्रभावना हुइ' । इसउं चीतवी करी धर्मघोषि अणसणु लीधउं। . 8574) बीजउ धर्मयशा मुनि चीतवइ ‘लोकि जाणाविइ' किसउं छइ ? हउं आपहे एकांति 20 जाई साधना करउं॥ तथाच भणितं किं परजण बहु जाणावइ वरमप्पसक्खियं सुकयं । इह भरहचकवट्टी पसन्नचंदो य दिटुंता । [८२४] इसउं चीतवी करी गुरु नी अनुमति ले करी उज्जयिनी अनइ यच्छगा नदी अंतराल गिरिकंदरि जाई करी पादपोपगमनि अनशनि रहिउ । जिम सिंहु निभीकु हुयइ तिम थाई एकाकी सुस्थिरचित्तु हूयउ। एतलइ प्रस्तावि उज्जयिनी नगरीमंडनु चंड प्रद्योतनंदनु धारिणी-कुक्षिसंभवु पालकु इसइ नामि अवनिपालकु हुयउ । तेह नउ लहुडउ भाई गोपालु इसइ नामि युवराजा । लघुकर्म भावइतउ सु सुगुरु पादमूलि दीक्षाग्रहणु करइ । पालक तणा अवंतिवर्द्धन राष्ट्रवर्द्धन इसां नामहं करी विख्यात बि पुत्र हूया' 125 ति पुत्र राज्य अनइ यौवराज्यि थापी करी पालकि पुण दीक्षा लीधी । धारिणी नामि राष्ट्रवर्द्धन तणी भार्या, रूपि करी जिसी कामभार्या हुयइ तिसी, हुई । अवंतिसेनु इसइ नामि तेह तणउ पुत्रु हूयउ। 575) अनेरइ दिनि उद्यानवनि क्रीडा करिती धारिणी अवंतिवर्द्धनि ज्येष्ठि निज नैत्रकौमुदी समानरूप दीठी दीठी । तउ पाछइ सकामु थिक दूतिकामुखि प्रार्थिवा लागउ । धारिणी भणि उं, “महाराज! जे आपणी लाज नहीं तउ किसउं भाई तणी लाज पुण' नहीं ? " तउ पाछइ अवंतिवर्द्धनि कामातुरि हूंतइ30 आपणउ भाई राष्ट्रवर्द्धनु कूडु करी मारिउ । अथवा कामी किस किस न करई। $571) 2 Note the solitary example where B. and Bb. both drop kha-h - and write पइलइ for पहिलइ । 3 Bh. omits. 8573) 12.शंसा । 2 P. adds निमितु। 3 P.-नामि। 4. P. प्रवर्तनी। 5 P. चमत्कारक-। 6. P. संजना-17. Bh. omits. 8 Bh. हिवडां। 8574) 1 Bh. जाणावियइ । P. जाणाविवइ । 2 P. हूअउ । 3. Bh. नामहं। 4 P. हुआ। 8575) 1. Bh. करती । 2. P. थकउ । 3. Bh. p. omit, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372