Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 281
________________ २०६ 5 षडावश्यकबालावबोधवृत्ति सन्मार्गे तावदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेन्द्रियाणां लज्जा' तावद्विधत्ते विनयमपि समालंबते तावदेव । भ्रूचापाकृष्टमुक्ताः श्रवणपथजुष' नीलपक्ष्माण एते यावल्लीलावतीनां न' हृदि धृतिमुषो दृष्टिबाणाः पतन्ति ॥ 15 [ ८२५] तदाकालि धारिणी गर्भधारिणी' आसन्नप्रसव हूंती निज शीलरत्न सर्वस्व रक्षाकारिणी राष्ट्रवर्द्धन ? नाममुद्रा" सहित हूंती नासी करी तेती " जि वार" वेगि करी कौशांबी नगरी गई। राय तणी यानशाला माहि रही हूंती महासती तीहं कन्हइ दीक्षा लीधी । दीक्षाविघ्नकारणि गर्भ कहिउ नहीं । पाछइ प्रवर्त्तिनी गाभ जाणिय 13 हूंतइ प्रच्छन्नवृत्ति स रहावी " । (576) प्रस्तावि जिम मेरुभूमि कल्पतरु प्रसवइ तिम तिणि पुत्र जाइउ । साध्वी रहइं पुत्र अनर्थ 10 जाणी करी जिम कोई' जाणइ नहीं तिम राजगृहांगणि नाम मुद्रांकित पुत्र तिणि मेल्हिउ । प्रभात समझ अजितसेनु राजा जिसउ मणिपुंजु हुयइ इसउ स बालकु कांतिमंतु देखी करी, अपुत्र छइ आपणी राणी' तेह रह हर्षित थिक' पुत्रु करी आपइ । गूढगर्भा राणी हुंती इसी परि प्रकाशी करी पुत्रजन्म महोत्सवु अजित सेनु' राजेंद्रु करावइ । मणिप्रभु इसॐ" यथार्थ नामु करइ । प्रवर्त्तिनी पूछी हूंती धारिणी भाइ, मृतु पुत्र जाइउ सु हिवडाई जि लांखी करी हउं आवी । " 66 [8576-77) ८२५ (577) अथ पुत्रप्रेम भावइतर राणी स धारिणी प्रीति करई । अजितसेनि दिवंगति हूंतइ मणिप्रभु राजा हूयउ' । सु अवंतिवर्द्धनु, अनुज राष्ट्रवर्द्धनु रहईं, धारिणी तणइ कारणि मारी करी राष्ट्रवर्द्धनु युवराजेंद्र अनई धारिणी बिहुँ इंतउ भ्रष्टु हूयउ' इंतर अति वैराग्य भावइतउ भाई नउ पुत्र अवंतिसेनु राज्यि बइसाली करी दीक्षा' लिया । अनेरइ दिनि अवंतिसेनि उज्जयिनी नायकि कौशांबी नायकु मणिप्रभु दूतमुखि भणाविउ, "मू रहईं क्रमागतु दंडु दे करी सुखाहें निर्भय थिकउ राज्यु 20 भोगवि ।” तर पाछइ' मणिप्रभु भणावइ, " सव्याजु ताहरउं राज्यु हउं लेसु " इसउं भणी करी तिणि दूतु पाछउ मोकलिउ । तउ पाछइ दूतमुखइतर सु अवंतिसेनु राजेंद्र सांभली करी जिम कलकलतउं घृतु जलबिंदुपाति झाल मेल्हइ तिम कोपि करी प्रज्वलतउ हूंतउ सर्वाभिसार मणिप्रभ ऊपरि कटकी ers | त्वरितगति' आवी कौशांबी नगरी विध्वंसबुद्धि हूंत स बिहुं गमा वेदु' घाती रहिउ । मणिप्रभु पुण संग्राम सज्ज सुभटवज्ज करी परसुभट तृणसमान मनतउ' हूंतउ कोट्ट माहि प्रगुण थाई रहिउ । 25 तदाकालि नगरलोकु परकटक भयातुरु हूयउ' । निखातोत्खातचिंता करी व्याकुल हूयउ । विहारोच्चार भूमि रहईं संकीर्णता भावइतर यतिलोकु असमाहितु हूयउ । पदि पदि संयम विराधना आत्मविराधना च' होइवालागी । तर पाछई जिणि धर्मघोषि" मुनि अणसणु" कीधउं इंतउं तेह रहई सुखतप सुख-संयम वार्त्ता रहई पूछणहारु को हूय उ" नहीं । जीविताशंशी" सु धर्मघोषु मुनि पूजा प्रभावना तणा अभावइत आर्त्तध्यानि वर्त्तमानु हूंतउ मूयउ " । जिम पाषाणु लांखियइ तिम कोट ऊपरवाडइ" ऊलाली करी 30 लांखिउ | 8575) 4 B. लज्जा । 5 Bh. - युषो । P. omits. 7 Bh. - मुखो । P. मुखे । 8. P. गर्भु -1 9. P. राष्ट्रवर्द्धमानु। 10 P. omits नाम - 1 11 B. omits. 12 Bh. P . ज । 13 B. adds-य-later. 14 Bb. राहवी । Jain Education International (576) 1 Bh. को। 2 P. धारणी । 3 P. थकउ । 4 P. प्रकाशि। 5 P. अजितु 16 B. Bh. add. नामु । $377) 1 P. हूअउ । 2 P. omits दी - 1 3 P. omits following three sentences. 4 B. drops words between तउ पाछइ... तउ पाछइ । 5 Bh. - सारि । 6P. -गत । 7 B. P . add करी । 8B. P. समान इतर मनतर । B. has afterwards tried to change-उ of इनउ to-r and thus confused. Bh. समानइ अवमनतउ | The whole passage from बिहुं गमा अणसणु की उं हूंत is added in the margin in Bh. 9P. omits. 10. Bh. P. -घोष । 11. Bh. अनसणु । 12. P. हूउ। 13. - हांसी । 14. p. मूअउ । 15. P. ऊपरि-1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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