Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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१९६
षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[3548). ७९४-७९७ रहई प्रतिबिंब समानु सुदत्तु इसइ नामि श्रेष्ठि हूयउ । सु पुणु जिणधर्म धुरंधरु हूयउ। पर्वदिवसि पाप संताप निर्वाप' विषइ महौषधु पौषधु ले करी बिहुं पहर राति समइ समता वर्त्तमानु गृह तणइ एकदेशि रहिउ छइ। तदाकालि को एक तस्करु अवस्वापिनी-विद्या विशारदु प्रभूत भूत भैरव सुभट परिवार परिवृत्तु तेह नइ घरि धाडि पइठउ। चोर नी विद्या करी बीजा लोक रहई नींद्र वशि करी मूर्छा आधी। पंचपरमेष्ठि नमस्कारु महामंत्रानुभावि सुदत्तश्रष्टि विषइ विद्या न प्रभवियइ । तेह सुदत्तश्रेष्ठि देखता रहई अदेखता हूतां ति तस्कर गृहसारु समस्तु हर्षित थिका मुसई। कपाट फोडिवा' लागा, मंजूष ऊघाडिवा लागा, द्रव्य तणई कारणि भूमिगृह पुण फोडिवा लागा।
अहो महात्मनस्तस्य, धर्मावष्टंभयन्त्रितम् । जातेप्युत्पातजातेपि, न ध्यानाचलितं मनः ॥
[७९४] अनागतेष्वथाऽगत्य, गृहृत्सु धनपद्धतीः । तेषु यातेषु च ध्यानभेदोऽभूत्तस्य न क्वचित् ॥
[७९५] प्रभात' समइ धननाशु देखी करी सकलि गृहजनि शोकु करतइ हूंतइ श्रेष्ठि पोसहु पारी करी दिवसकृत्यविधि सउं करिवा लागउ । पुण्यानुभावि तेह नइ घरि वली घणाई जि धन हूयां ।
$548) अनेरइ दिनि सु अवस्वापविद्या-चोरु सेठि ना घर हूंती ज वस्तु चोरी हूंती तेह वस्तु 15 माहिलउ एकु अमूलिकु मुक्ताफल नउ हारु ले करी तिणिहिं जि नगरि वीकिवा आविउ । सु हारु सुदत्त
श्रेष्ठि तणइ वाणउत्रि ओलखिउ । सु चोरु धरी करी तलार रहइं आपिउ । सु चोरधरण वृत्तांतु सुदत्तु जाणी करी इस चीतवई।
न सत्यमपि भाषेत, परपीडाकरं वचः। लोकेपि श्रूयते यस्मात्कौशिको नरकं गतः।।
[७९६] 20 इसउं चीतवी वेगि आवी चोर रहई मेल्हावइ । किसी परि आपणा वाणउत्र' ऊपरि कोष
करतउ तउ तलार आगइ कहइ, “ एउ अम्हारउ वाणउत्रु काई जाणइ नहीं। मई पूर्विहिं एकि दिनि एउ हारु एह रहई मूलि दीधउ हूंतउ । एउ किसउं इस माणसु छइ जि सु चोरी करइ । एह वात माहि कांई छइ नही । तुम्हे एउ परहउ मेल्हउ।" तलारि चीतविउं, "जु धणी जाणई सुपाडोसी न जाणइ । तिणि कारणि सेठि साचउ, वाणउनु कूडउ । अनइ द्वादशव्रतधारी श्रेष्ठि कूड बोलइ नहीं,' तिणि कारणि 25 श्रेष्ठ नइ कथान तलारि चोरु मेल्हिउ । बुद्धिमंत तणी बुद्धि रहई असाध्यु काई नहीं। श्रेष्ठि चोरु आपणइ
घरि आणि जीमाडी कापड पहिरावी मोकलिउ । कहिउं, " वली रखे चोरी करतउ । मई दया करी मेल्हाविउ छइ, पुण बीजउ को नहीं मेल्हावइ।" इसउं भणी करी घरि मोकलिउ। श्रेष्ठि नइ उपकार चोरी तणउं मनु भीनउ । तउ पाछइ अकृत्यकरण भय तणी जाणिवा वांछा ऊपनी । यदुक्तं
जो जारिसेण संगं करेइ आचिरेण तारिसो होइ । कुसुमेहिं संवसंता तिला वि तग्गंधया हुंति ॥
[७९७]
. 547) 4 P. पुण। 5 P. - निर्वापि । 6 P. omits त-17 P. थका । 8 P. फाटिवा। 9 P. प्रभाति । 10P. omits ध-।
8548) 1 P. चोरु। 2 P. भारु । 3 P. चीतवी, and omits the following couplet, and continues with.चोर रहई, haplography 4 P. वाणउत्र। 5 B. omits 6 Bh. जिसउं । P. जिसुं। 7 Bh. जाणाइ । 8 B. P. अन । 9 B. Bh. राखे। 10 Bh. लगी। 11 Bh. कोइ। 12 Bh. मेल्हावसि नहीं। 13 B. P. omit 14 Bh. adds करी। 15 Bh. चोरहीं। ; one expects चोरि । 16 P. -भण ।
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