Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
$556-557 ). ८०५]
श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत किसी परि पडी ! सु ताहरु' परिवारु किहां गयउ ? हहा ! धिग् धिम् विधि विडंबना रहइं! " साई अवस्थापतितु कांतु संनिधि संप्राप्तु देखी करी हर्षविषादास्नुसंकर-संकीर्ण लोचनु करइ । प्रियतम मेलापकइतउ धन्यु आपणपउं तिहाई मनती हूंती भणइ, " ए हां रत्नवती, ताहरी सुंदरी प्रिया । तिहां हूंती जायती हूंती अटवी माहि आवी । सगल्लू साधु चोरे लूसिउ । सु परिजनु नासी करी गयउ। चौरे जेतीवार माहरा शीलभंग करिवा कारणि समुद्यम कीघउ, तेतीवार हर्ड धाई करी शीलरक्षा कारणि आकुली हूंती कृतांतमुख प्रतिरूप एह कूप माहि पडी। तुम्हारा वदनालोक भोक्तव्य कर्मह करी जीवी। कहउ न तुम्ह रहई एह कूप माहि किसी परि पतनु हूयउँ ? तिणि सचिव विद्वेषियइ तुम्ह रहई विरोधइतउ कीस कीध?
8556) जिनदासु कहइ, “ तिणि सचिवि मारणोत्सुकि हूयइ हूंतइ हडं कर्मकरवोषि एकलउ नीसरिउ । निरंतर विहारि ईहां आविउ । तृसिउ हूंतउ एह कूप माहि पडिउ । पाणी देखतउ पाद-10 स्खलना वसइतउ" । निर्जल तेह कूप माहि नाहिप्रमाणु जलु इयर्ड, पुण्य प्रभावइतउ। जिस खीरु हुयइ इसउं सुनीरु पी कर ति बे खेद तृस उपसमावी करी अति सुप्रीतचित्त इयां। अथ क्षणांतरि सार्थ एक आविउ । जीस तहिं तण पुण्यकुंभु हयइ तिसउ कुंभु रज्जु बांधी करी पाणी काढिवा कारणि तेह कूप माहि किणिहि मूकिउ । सु कुंभु माहि जेतीवार' साहिउ तेतीवार तिणि पुरुषि माहि माणुसु जाणी अपर पुरुष आणी, ताणी करी बाहिरि, जिम जममुख हूंता काढियई तिम, काढियां बे जण । जेतलई ति कूया हूंतां नीसरियां तेतलइ आगिलइ गमइ रहितु छइ साधु सु 'कूया हूंतउं मिथुनु नीसरिडं। इसउ कोलाहलु करइ । तेह शब्दइतउ कौतुकी सार्थवाहु पुण तिहां आविउ । भत्र सहित दीकिरि देखी करी मन माहि विस्मयापन्नु हूयउ। जिणदासु पुण 'सुसुरउ एउ। इसी परि धनसार्थवाह रहई ओलखी करी चमत्कृतचित्तु हृतउ प्रणाम करइ । 'किस एउ' इसी परि सविस्मय थिका' सार्थवाह रहई पूछता हूतां जिणदासि आपणउं वृत्तांतु मूल लगी सगलू कहिउ । तिणि, स्वजनि संबंधि हूयइ हूंतइ व्यसन तण दुहेल सगल्लू गली गयउं । ति सव्वे पुटकुटी माहि सुखिहि रहियां । आथमण मिसांतरि जाई करी आदित्य तीहं तणइ आश्चर्यकारकि इसइ चरित्रि कहियइ हृतंइ जाणे जोइवा कारणि उदयामिसि संध्या समइ शशी आविउ
5557) अथ चंद्रोदय समइ जिनदासु देहचिंता करिवा प्रचुरतरु वणांतरि गयउ। तिहां लक्ष्मीधरु सूतउ देखी जोयइ, तउ मूयउ देखइ । अक्षतु सु देखी करी मित्रवच्छलु सर्पडंकु तेह रहई.. जाणी करी दुक्खितु ह्यउ । तेह कन्हा सप्रभाव स्वकीय रत्न ले करी पाणी ओहली तेह रहई पाई जीवाडइ । तउ क्षणांतरि सु जीवितु देखी जिणदासु रुलियायतु थिउ ।
उपकृत्युपकुर्वाणा ध्रियन्ते धरया न के। अपकृत्युपकारी यस्तेन तु धियते धरा ॥
[८०५] लक्ष्मीधरु जीविउ हूंतउ तउ जिनदास रहई देखी करी लज्जावनम्रमुखु इयउ' । तउ पाछइ जिनदासु तेह आगइ कहा, “मित्र ! हतई कया माहि न घातिउ।किंतु पदस्खलना ल हे कूया माहि पडिउ । तसं आपणा मन माहि किसीयइ लाज म करि। किस को कुणही मरता' पूठि मरी सकइ छइ ? मू रहई अधुना धन सार्थवाहु मिलिउ ह तेहस वाणारसी नगरी जाइसु त ईहां
8555)1 Bh. ताहरउ। 2 Bh. हा हा। 3 B. omits. 4 B. P. रहिं। 5 P. हुअउ। 6P. रई 7 P. omits.
8556) 1 P. हुआ। 2 Bh. abds तिहां । 3 B. जेवार । Bh. also has added - ती- later. 4 Bh. माणम् । P.adds करी। 6 P. omits स-17 P. थका । 8 Bh. जोएवा ।
$57) 1 B. वशांतरि। P. वनांतरि । 2 P. adds करी। 3 P. हुअउ । 4 B. स्वप्रभाव । Bh. सुप्रभाव P. स्वभाव । These transmitted unoriginal readings call for emendation. 5 Bh. omits. 6. Bh, रुलियायतु । 7 P.जिमदासु । 8. P. पाडिउ । 9 P. मारतां ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/95dc79e559c70bbc46849cb6bec365d4c51ba2cf638d7c8eef50d7757f15f961.jpg)
Page Navigation
1 ... 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372