Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[8553-555) ८०४ दातव्यु अशनादिकु तेह तणउं अदानबुद्धि वशइतउ सचित्त पृथिवीकायादिक तीहं माहि निक्षिपणु सच्चित्त निक्षिपणता पहिलउ अतीचारु ।
सचित्ति करी ढांकता हूंतां सचित्तपिधानता बीजउ अतीचारु । आपणउं अशनादिकु अदानबुद्धि करी पर तणउ कहतां परद्रव्य व्यपदेशु त्रीजउं अतीचारु।
किसउं ईहं' कन्हां हां हीनु इसी परि परु हीनधनु दितउ' देखी मच्छर लगी दियतां हूंतां मत्सरदानु चउथउ अाचारु ।
साधुभिक्षा वेलातिक्रमि हूयइ हूंतइ भिक्षानिमित्तु साधु निमंत्रतां हूंतां कालातिक्रमदानु पांचमउ अतीचारु।
ईहं नइ विषइ चउथइ शिक्षाव्रति जं कोई पापु बांधउ सु निंदउं।
8553) अतिथिसंविभागव्रत विषइ सुमित्रा नाम' परम श्राविका, तेह तणी कथा लिखियइ । तथाहि
एकावयवतोप्येतत्सेवितं श्रद्धयाधिकम् । सुमित्राया इवौन्नत्यै जायते द्वादशं व्रतम् ॥
[८०४] श्रीवसंतपुरु इसइ नामि पुरु। अतिविक्रमवंतु इसइ नामि अतिविक्रमवंतु राजा तिहां राज्यु 15 करइ । तेह तणइ वसु इसिइ नामि मंत्रीश्वरु हूयः सदा विकसिति जेह तणइ बुद्धिकमलि राज्यलक्ष्मी
सुखिहि वसी । जिनदासु नामि राजा रहइं अतिवल्लभु श्रेष्ठि हूयउ।सु पुण' जिणधर्मधुराधौरेउ कल्याण तणउं निधानु सकल पौरजन प्रधानु वर्त्तइ । तिणि एतलांके सुवर्ण रत्न उपार्जियां जेहे करी क्षिति माहि अनेकि मेरुपर्वत अनेकि रोहणपर्वत उपाइयइं । ' यक्षराजु धनाध्यक्षु' इसी परि जाचक' लोकि भणिउ। धनदु जिनदासु एकु संस्तविउ । वाणारसी नगरी वास्तव्यु धनु नामि छइ सार्थवाहु तेह तणी रत्नवती 20 नामि दीकिरी कलावती लीलावती तिणि परणी । जिणदास रहइं विश्वासपात्र लक्ष्मीधरु इसइ नामि ब्राह्मणु जिसउ लहुडउ भाई हयइ इस परममित्र इय। राजेंद्र अतिविक्रमवंत रहइंतिम न मंत्री न पुत्रु न कलत्रु वल्लभु जिम जिनदासु वल्लभु।
5554) 'एह जिनदास मित्र रहई राउ कदाकालि मंत्रिमुद्रा पुण आपिसिइ' इसी परि वसु सचिवेश्वरु मन माहि संभावी करी जिनदास रहई मारिवा विषइ मनु करइ। जिणदासु पुण दक्षता 25 लगी चक्षुर्मनोविकारादिकह लक्षणहं करी आपणपा ऊपरि विरुद्ध जाणइ । तउ पाछइ राजेंद्र रहई
मोकलावी करी तीर्थयात्रा व्याजांतरि भार्या रत्नवती पहिरि' मोकलइ। वसुमंत्रींद्रि पुण तेह माराविवा' कारणि रात्रि तेह तणा घर तणउ माणु आपणां जणहं कन्हा रूंधाविउ । जिणदासु पुण माणु बाधउ जाणी करी अति समभाव बहुमूल्य रत्न ले करी लक्ष्मीधर मित्रसहितु कर्मकरवेषु करी पुर हूंतउ
मागु अजाणता भयवशइतउ निरुतरु जायतउ हूंतउ अरण्य' माहि पडिउ । तिहां जउ अति 30श्रांतु तृषाकांतु इयउ तउ वस्त्रांचलबद्ध सप्रभाव रत्नपरंपरा मित्र लक्ष्मीधर करि आपइ । जिस साक्षात्कारि तेह तणउं जीवितव्यु हुयइ तिसी स रत्नपरंपरा छइ।
3555) तउ पाछइ आपणपई किणिहिं कूपि पाणी जोयतउ हूत रत्न तणइ लोभि तिणि लक्ष्मीधरि मित्रि पगे धरीऊ पाडिउ हूंतउ कूपि पडिउ। पडतउ हूंतउ ‘कउणु इउ ?' इसइ वचनि करी बोलाविउ हूंतउ आपणी प्रियतमा रत्नवती ओलखी करी भणइ, " प्रियतम ! तउं पुण एह कूप माहि
8552) 2. Bh. ईहीं । 3. Bh. दियतउ। य is an intralinear addition. 8553) 1 P. नामि । 2 P. अतिक्रमवंतु। 3 P. omits 4 Bh. P. इसइ । 5. P. हृअउ । 6 P. पुणि ।
7 P. याचक । 8P. संसूचिउ। 8554) 1 Bh. पीहरइ । 2 Bh. बाधुउ । 3. Bh. पुरु। 4 P. अरण्य । 5 P. हुअउ ।
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