Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

Previous | Next

Page 228
________________ $446-447 ). ५९८] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत हिंसा निरन्तरं दुःखमहिंसा तु परं सुखम् । जन्तोदात्यहो सूरचन्द्रयोरिव तद्यथा । [५९७ अ] जयपुरु' नामि पुरु । शत्रुजउ' नामि राजा । सूर चंद्र नामहं करी प्रसिद्ध बि पुत्र । जेष्ठानुरागि करी राजेंद्रि ज्येष्ठ युवराजा कीधउ । वृत्ति करी । चंद्रु पत्तिमात्राई करी गणिउ नहीं। तउ अपमान वशइत चंद्रि देशांतरु लीधउ । रत्नपत्तनु नामि नगरु । तेह नइ उद्यानवनि शीतलि तरुतलि विश्राम' निमित्तु बइठई हूंतइ श्रुति सुधासारणि समानु स्वरू सांभली करी महाधनुर्धर शर जिम स्वरानुसारि जायतइ हूंतइ वन माहि सुदर्शनु नामि मुनिवरु दीठउ । प्रणमी करी धर्मदेशना सांभली करी नियम लीधउ । “ मई कृतापराधइ जीव राजेंदादेशिहिं सूर्यवृत्ति मूकी करी बीजी परि मारिवा नहीं।” तिणिहिं जि नगरि जयसेनु राजा ओलगिउ । शौच शौर्य दाक्ष्य' दाक्षिण्यौचित्यादिकह गुणहं करी राजेंद्र रहई अतिवल्लभु हूयउ। _____10 8446) अनेरइ दिनि जयसेनि राजेंद्रि एकांति' बइसाली चंद्रु भणिउ । “अनीति मदिरा कुंभु कुंभु नामि चोरु उत्कटु ऊठिउ छइ । अहो वीर कोटिर! सु तू पाखद अनेरइ किणिहिं मरइ नहीं। तिणि कारणि तउँ सु माहरा हिया नउं शल्यु ऊधरि ॥ यतः स्त्रीश्च गाश्च हरत्येष क्रूरो हंति यतीनपि । चमूरुद्धो यमस्यापि दुर्गमं दुर्गमंगति ।। [५९८] 15 तिणि कारणि प्रकटवृत्ति सु मारी न सकियई । माहरइ कथनि गुप्तवृत्ति जाई करी सूता हूंता तेह रहई मारि।" इसइ कथनि जयसेनि राजेंद्रि कहियई हूंतइ चंद्र भणइ । “महाराज! संग्राम पाखद मं रहई जीव मारिवा नियम छ। संग्रामिहिं नासता निरायुध मारिवा नउ निषेधु छइ।” तर पाछइ तेह नउ तिसउ निश्चउ जाणी करी राउ जयसेनु घणेरडं चित्त माहि रंजिउ । अंगरक्षकहं माहि महा. मात्यहं माहि सु मूलिगउ कधिउ । अनेरइ दिवसि सु कुंभु चोरु देस माहि पसरिउ । तउ पाछइ राजा-20 देसइत सारसुभट परिवार सहितु चंद्रु तेह पूठि धायउ । आघड जाई करी दुर्ग नउ मार्ग संधिउ । सर्वदिसि मिलित सुभटहं वन माहि गज जिम वेढिउ । अशरण भावइतउ तिणि चंद्र रहई आवी करी प्रणामु कीधउ । मुखि तृणउं पशुभाव संसूचकु लीधउं । चंद्रु उत्तम प्रकृतिता करी चित्ति चीतवइ । 'पादावनामांतु कोपु संतहं रहई ' तिणि कारणि उपशांतु हूंतउ चंद्रु तेह ऊपरि तूठउ । ऊठाडी करी भाई जिम सांई लीधउ । आपणपा सरसउ रत्नपत्तनि आणिउ । देसदापन' पसाउ करावी राजेंद्र कन्हा मेल्हाविउ । जयसेनु राजा पुत्रहीं कन्हा राज्यलक्ष्मीही कन्हा चंद्रु अधिक करी मनई। 25 8447) चंद्र नउ वडउ भाई सूरु युवराज्यलक्ष्मीलाभिहिं अतृप्तुहूंतउ राज्यलक्ष्मी लेवा कारणि शत्रंजय राजेंद्र आपणा बाप रहई मारणमनु इयउ । अनेरइ दिनि सूतउ हूंतउ विश्वस्तु शत्रुजय राजेंदु तिणि मारिउ । मारी जायतउ देवींदीठउ । “घातक जाइ, जाइ," इसीपरि वाहवि। आरक्षक द्वार पालकादिकहं धायतां हूतां:कंठागतप्राणु राजा कहइ,-"कउण तणउ एउ इसी परि जाणिवत्रं मारिवउ नहीं।" इसउ राजादेसु सांभली करी तेहे सुतु जाणी करी देस हूंतउ निर्धाटिउ। रत्नपत्तन हूंतउ चंगु 30 अणावी करी राज्यि बइसालिउ। 445) 2 P. जइयपुर । 3 Bh.- जय । P. शत्रुजउ ! Bh. omits. 5 Bh. gloss: पाइक । 6 P. वश्यतउ । 7 Bh. विश्रामि । 8 Bh. धनुधर । P. धनद्धर । 9 P. दाक्ष ) 10 B. दाक्षिणो 8446) 1 P. एकान्त । 2 Bh. तूंउ। 3 Bh. रई। 4 P. निरायुध्यु। 5P. राजा आदेशतउ । 6 P. असरण -17 P. दस-18 B. P. omit. 9 Bh. मानइ। P. मन्नइ । 8447) 1 P. omits. 2 P. वाहठिउं। 3 Bh. P. आणावी । ष. बा.२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372