Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 268
________________ 8542-43 ) ७८८-७८९] श्री तरुणप्रभाचार्यकृत १९३ तत्र उपवसनु-उपवासु पौषध तणउ उपवासु पौषधोपवासु । तेऊ जु व्रतु पौषधापवासु व्रतु कहियइ । सुपुग आहारादि परिहार भेदइतर चतुर्द्धा हुयः । तत्र आहारपरिहार पौषधु देसतो' भेदइतर सर्वतो भेदइतर द्विविधु । तत्र एकाशनादि प्रत्याख्यानु देशत, आहारपरिहार पौषधु चतुर्विधाहार परिहाररूपु सर्वत आहारपरिहार पौषधु । इसी परि सरीर ' संस्कार परिहार, अब्रह्म परिहारु, अव्यापार परिहारु, पौष पुण द्विविद्विविधु जाणिवउं । अत्र अतिचार प्रतिक्रमण निमित्तु भणइ । संथारुच्चारविही पमाय तह चैव भोयणाभोए । Heart fair apए सिक्खावए निंदे || [ ७८८] 'संथारुच्चारु विही पमाय'त्ति । संथारउ केबलकादिमउ । उपलक्षण भावइतर शय्या काष्ठ पट्टमयी पुर्ण जाणिवी | (542) उच्चार प्रस्रवण' भूमि द्वादशसंख्य यथा बारस बारस तिन्निय काई - उच्चार काल भूमीओ । अंतोहिं च अहियासि अणहियासी न पडिलेहे ॥ (543) तेह विष प्रमादु किसउ अर्थु ! अप्रेक्षिति दुःप्रेक्षिति शय्या संस्ताराके उपवेशनु । शयनु कर अप्रेक्षित दुःप्रेक्षित शय्या संस्तारकता एकु अतिचारु । अप्रतिलेखिति दुःप्रतिलेखिति शय्या संस्तारकि उपवेशनु शयनु' करतां अप्रतिलेखित दुः प्रतिलेखित शय्या संस्तारकता बीजउ अतीचारु । [ ७८९ ] सर्व दैवसिक कर्म करणानंतरु संध्यासमइ सिंहद्वार हूंता प्रविशमान कायिका लघुनीति उच्चारु ast नीति । तीह नउ कालु लघुनीति बृहन्नीति शंवेगु । तेह नी भूमि तन्निमित्तु हस्तप्रमाण हस्तांतरित द्वादशमंडल वसति माहि की जई । किसउ अर्थ ? पहिलउं भुई दृष्टि करी जोइयइ । पाछइ दंडाउंछणास ' 15 विधिसउं दयापरिणामि वर्त्तमान हूंता पडिलेहियई । वसति बाहिरि पुण दृष्टि करी बारह मंडल परिकल्पियई । ' अहियासी' किसउ अर्थ ? लघुनीति वडनीति तणउ वेगु जउ धरी रहावी सकउं, न सकउं एउ अहियासीन अर्थ । 'दूरे उच्चार पासवण अहियासी' इसउं भणतां वसति माहि सिंहद्वार हूँता एकदिशि होई हस्तप्रमाण हस्तांतरित प्रविशमान बि मांडलां कीजई । 'मज्झे उच्चार पासवण ' इस भणतां बिकीजइ । 'आसन्ने उच्चार पासवण अहियासी' इसउं भणतां बिकीजई । तथा संथारक, समीप ' दूरे उच्चार पासवण अणहियासी' इसउं भणतां वि मांडलां कीजइ । 'मज्झे उच्चार पासवण अणहियासी' इसउं भणतां बि कीजइ । 'आसन्ने उच्चार पासवण अणहियासी' इसउं भणतां बि कीजइ । वसति माह इसी परि बारस' मांडला कीजई । ' तिन्नि य' किसउ अर्थ ? जि' छ छ मांडला. बिउ थानके कीज तीहं माहि त्रिन्हि लघुनीति निमित्त त्रिन्हि वडीनीति निमित्तु इसउ ' तिन्निउ ' पह न अर्थु । वसति बाहिरि पुण इसीहीं जि परि वसति माहि विकां पहिलउं दूरि छ मांडलां कल्पियई, पाछइ आसन्न छ मांडलां कल्पियई । वसति बाहिरि इसी परि बार मांडलां कल्पियई 'तिनिउ ' तणउ जिम पूर्वी अर्थ तिम ईहीं' अर्थु । इति थंडिल करण विधि | 20 25 अप्रतिलेखिति दुःप्रतिलेखिति थानकि उच्चारु प्रस्रवणु' करतां अप्रतिलेखित दुःप्रतिलेखित ' उच्चार पासवणता चउथउ अतीचारु । किसइ हूंत इत्याह 30 एवं अपेक्षित दुःप्रेक्षित स्थानकि उच्चारु प्रस्रवणु' करतां अप्रेक्षित दुःप्रेक्षित उच्चार पासवणता त्रीजउ अतीचारु । ( 541 ) 1. Bh. देशतो । 2. Bh. शरीर । 542 ) 1 B. Bh. प्रश्रवण । 2 Bh. दंडाछणा -1 3 Bh. बिवार स। 4 Bh. repeats जि । 5 Bh. बारस । 6 Bh. adds ई । (548) 1 Bh. omits. 2 B. Bh, प्रश्नवणु: 3 Bh. -ति । ब. बा. २५ 5 Jain Education International 10 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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