Book Title: Shadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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१६२ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[8467-49) ६२१-६२७ लक्ष्मीपुञ्ज-कथां श्रुत्वा भव्याः स्तेयविवर्जनम् । कुरुध्वं येन वस्तूर्णं पूर्ण भवति मङ्गलम् ।।
[६२१] ॥ अदत्तादान परिहार विषइ लक्ष्मीपुंज कथा ॥ $467) अथ चउथउं व्रतु कहइ।
चउत्थे अणुव्वयंमी निचं परदारगमण विरईओ। आयरियमप्पसत्थे इत्थ पमायप्पसंगणं ॥
[६२२] चउथइ अणुव्रति नित्यु सदा पर अनेरा पुरुष तीहं तणां दार कलत्र परिणीत संग्रहीतादि भेदबंध अनेकविध वनिता तीहं नई विषइ गमनु आसेवनु तेह नी विरति नित्य परदारगमन विराति कहियइ। स पुण परस्त्रीसेवा इहलोक परलोक विरुद्ध अपकीर्ति दुर्गति जनक तिणि कारणि श्रावक हूंतइ परस्त्रीसेवा10 निवृत्ति अवश्यमेव करेवी॥ तथा च भणितं
प्राणसंदेहजननं परमं वैरकारणम् । लोकद्वयविरुद्धं च परस्त्रीगमनं त्यजेत् ॥
[६२३] विक्रमाक्रान्तविश्वोपि परस्त्रीषु रिरंसया। कृत्वा कुलक्षयं प्राप नरकं दशकन्धरः॥
[६२४] तिणि काराण परदारगमनविरतिइतउ 'आयरियमप्पसत्थे इत्थ प्पमायपसंगणं' पूर्ववत् । 8468) ईहीं जि व्रत तणां अतीचार तणउं प्रतिक्रमणु भणइ ।
अपरिग्गहिया-इत्तर-अणंग-वीवाह-तिब्व-अणुरागे । चउत्थवयस्सऽइयारे पडिक्कमे देसियं सव्वं ॥
[६२५] अपरिगृहीता-विधवा तेह नइ विषइ गमनु अपरिगृहीतागमन १। 'इत्तरत्ति-इत्वरु अल्पकालु भाटी दानइतउ ज वेश्या किणिहिं आपवशी कीधी हुयइ स इत्वरा कहियह। तेह नह विषइगमन इत्तरगमन २। 'अणंग 'त्ति-अनंगु कामु तत्प्रधानक्रीडा वनिता तनुस्पर्शादि क्रिया अनंगक्रीडा३ । 'परवीवाह 'त्ति पर तणां अपत्यहं तणउं स्नेहादि भावइतउ परिणयनु करावणु परवीवाहकरणु ४। आपणाई अपत्यविषह संख्याभिग्रह करवा युक्त हुयइ। 'तिव्वअणुराग 'त्ति-कामभोग विषइ गाढी आसक्ति तिव्य अणुराग कहिइ सदा विषयाध्यवसायु इत्यर्थः ॥५।
जु स्वदारसंतोषी श्रावकु हुयइ तेह रहई छेहला त्रिन्हि अतीचार आद्य बि अतीचार भंगइ जि हुयइं। तथा च भणितं
परदारवज्जिणे पंच हुंति तिनिउ सदारसंतुटुं । इत्थीइ तिन्नि पंचउ भंग विगप्पेहिं नायव्वा ॥
[६२६] ति आश्रयी करी जु कर्म बाधउं—इत्यादि पूर्ववत् ॥
1469) चतुर्थव्रत विषइ नागिलकथा लिखियइ ॥ 30
अहो ब्रह्मव्रतं मुक्तेः संमुखीकारकारणम् । नीयते नागिलस्येव विपदामुपदाहकृत् ॥
[६२७] तथाहि
महापुरु नामि पुरु । भोजु नामि राजा । लक्ष्मणु नामु श्रेष्ठि जिनधर्म सर्वसारू मनइ। तेह नी नंदा नामि विवेकिनी नंदनी । स पुण' सतीमतल्लिका परिणयन योग्य हूंती पिता आगइ कहइ
8468) 1 Bh. कहियइ ।
$49) 1 Bh. has corrected मानइ to मनइ । P. नमइ। 2 Bh. gloss : पुत्रिका । P. नंदिनी। 3 P. पुणि।
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