Book Title: Shabda Sanchay
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ अनुसन्धान ४९ शम्भोः 'शम्भुना शम्भुभ्याम् शम्भुभिः शम्भवे शम्भुभ्याम् शम्भुभ्यः शम्भुभ्याम् शम्भुभ्यः शम्भोः शम्भवोः शम्भूनाम् शम्भौ शम्भ्वोः शम्भुषु सं० हे शम्भो हे शम्भू हे शम्भवः ४अथ ऊकारान्ताः । ५खलपूर्यवलूहूंहू: नग्नहू: कटप्रूः स्वयंभूः । प्रतिभूर्मनोभू .... रूदन्ताः पुंसि कीर्तिताः ॥ खलपूः "खलप्वौ खलप्वः खलप्वम् खलप्वौ खलप्वः खलप्वा खलपूभ्याम् खलपूभिः खलप्वे खलपूभ्याम् खलपूभ्यः खलप्वः खलपूभ्याम् खलपूभ्यः खलप्वः खलप्वोः खलप्वाम् खलप्वि खलप्वोः खलपूषु सं०हे खलपू: हे खलप्वौ हे खलप्वः एवं यवलूः । १. रः पुंसिना [सि० १-४-२४] A. | २. डे [२-१-५७ का.] उकार ओकार A. I ३. डसिडसोरलोपश्च [२-१-५८ का.] A. I ४. C. प्रतौ एषः श्लोको नास्ति, किन्तु "लूहहू: खलपूर्नग्नहूर्यवलूः कटप्रवः" । एवं कटप्रू स्वयंभूप्रभृतयः - इति पाठोस्त । ५. सज्जनः A. । ६. मद्यबीजम् A. } खलपूशब्दस्य धातूदन्तत्त्वाद् अनेकाक्षरयो [स्त्वसंयोगाद्यवौ २-२-५९ का.] इत्यादिना स्वरे वत्त्वम् B.I 'खलपूः स्याद् बहुकरः' B.I स्यादौ वः [सि० २-१-५७] C.! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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