Book Title: Shabda Sanchay
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 55
________________ सप्टेम्बर २००९ पन्थानम पन्थानौ पथिभ्याम् पथिभ्याम् पथिभ्याम् १पथः 'पथिभिः पथिभ्यः पथिभ्यः पथाम् पथिषु हे पन्थानः पथोः पथोः हे पन्थानौ पथा पथे पथः पथः पथि सं० हे पन्थाः३ एवं "मथिन्-ऋभुक्षिन् । पुमान् पुमांसम् पुंसा पुंसे पुंसः पुंसः पुंसि सं० हे पुमान् पुमांसौ पुमांसौ पुंभ्याम् पुमांसः पुंसः पुंभिः पुंभ्यः पुंभ्यः पुंसाम् पुंभ्याम् पुंभ्याम् पुंसोः पुंसोः पुंसु हे पुमांसौ हे पुमांसः तथा भुवौ भुवम् भुवौ भूभ्याम् भूभ्याम् भूभ्याम् भुवोः भुवि भुवोः १. अधुस्वरे लोपम् [२-२-३७ का०] A. I २. व्यञ्जने वैषां [२-२-३८ का०] A. 1 ३. हे पन्था A.B.C.I ४. पा. मथि-ऋभुक्षि A.B.! भुवः भुवः भूभिः भूभ्यः भूभ्यः भुवाम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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