Book Title: Shabda Sanchay
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 97
________________ सप्टेम्बर 2009 ल: / मन्यनि ण्यणि स्त्र्युक्ता इत्यनेन स्त्रीलिङ्गार्थः / कवेर्भाव: कविता, भावे त्व-तल् [सि० 7-1-55] / वः / उत और्विति व्यञ्जनेऽद्वेः [सि० 4-3-59] इत्यादिविशेषणार्थः / यथा-युक्-मिश्रणे, तिवि यौति / क(श)कारः क्यः शिति [सि० 3-4-70] इत्यादिविशेषणार्थः / यथा-क्रियते इति क्रिया / कृगः शच्चाष: (श च वा) [सि० 5-3-100] / षः / षितोऽङ् [सि० 5-3-107] इत्यत्र विशेषणार्थः / यथाक्षमौषि-सहने, क्षमणं, क्षमा / सः / नामासिद्य (म सिदय) व्यञ्जने [सि० 1-1-21] इत्यत्र पदत्वार्थः / यथा- भवतोऽपत्यं भवदीयः, भवतोरिकणीयसौ [सि० 6-3-30] / हो नास्ति / धातुपारायणावचूरिः समाप्ता / श्रीहेमचन्द्रसूरिव्याकरणनिवेशितानां धातूनां प्रत्ययानां चाऽनुबन्धफलं लिलिखानम् / // छ // श्री // आवरणचित्र विषे पेथापुर (महेसाणा) गामना 'बावन जिनालय' स्वरूप प्राचीन जिनमन्दिरमा विराजती आ जिनप्रतिमा छे, जे परम्पराथी अजितनाथ-प्रतिमा (बीजा जैन तीर्थङ्कर) तरीके जाणीती छे. कायोत्सर्ग (ध्यानस्थ) मुद्रामा रहेली आ प्रतिमानी विलक्षणता ए छे के तेना बन्ने हाथोमां माळा तथा कमण्डलु देखाय छे. सामान्यत: ध्यानस्थ के पद्मासनस्थ कोई पण प्रकारनी जिनप्रतिमाना हाथोमां आवी कोई ज वस्तु होती के मूकाती नथी. आ दृष्टिए आ एक प्रतिमा गणाय. जोके प्रतिमानी पाटली परनो लेख हशे तो पण अत्यारे घसाई घसाईने अदृश्य छे. परन्तु आ प्रतिमा तीर्थङ्करनी प्रतिमा न होय, पण कोईक साधक मुनिनी प्रतिमा हशे, एवी सम्भावना तथ्यनी वधु निकट जणाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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