Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ११ )
विषय
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उत्तर-यह लेख भी तुम्हारे पक्षके हठ को सिद्ध . करता है क्योंकि निशीथ सत्र में तो मूर्तिपूजन
का खण्डन किया है इस विषय का पाठ और
अर्थ भी लिख दिया है। २२ प्र०-वलिकम्मा इसशब्दसे क्या मूर्तिपूजा सिद्धनहीं
होती है ? उत्तर-सूत्रों में बलिकम्मा का अर्थ वलिकर्म । वल वृद्धि करने में स्नान विधि क्या सत्रकार ऐसे भ्रम जनक संदिग्ध पदोंसे मूर्ति पूजा कहते ? नहीं २ अवश्य सविस्तर लिस दिखलाते।
१२४ २३ प्र०-ग्रन्थों में तो उक्त पूजादि सब विस्तार लिखे हैं
उत्तर-इम ग्रन्थों के गपौडे, नही मानते हैं। प्र.-इसमें क्या प्रमाण है कि ३२सूत्र मानने
और नियुक्ति प्रादि न मानने उत्तर-भली प्रकार से सूत्र शाख के प्रमाण से न मानना सिर करके ग्रन्थों के गपौडे और