Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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'( ५८ ) धरके तोड़ने खाने में दोष है तो उसके वंदने पूजने से लाभ भी होगा।
उत्तरपक्षी-ओहो तुम यहांभी चूके क्योंकि कई क्रिया ऐसी होती हैं कि जिनके तोड़ने फोड़ने में दोष तो भावाश्रित होजाय परंतु उनके पूजनेसे लाभ न होय।।
पूर्वपक्षी-यह क्या कोई दृष्टान्त है। उनरपक्षी-यथाकोई पुरुष मिट्टी की गौ वनाके उस को हिंसा के भावसे छेदे (तोड़े) तो उस परुषको गौ घातका दोष लगे वा नहीं पूर्वपक्षी हांलगे।
उत्तरपक्षी-यदि कोई पूर्वोक्त मिट्टी की गौवना के उसे दूधलाभकभावसेपूजे और बिनती करें कि हेगौमाता दूधदेतो ऐसे दूधका लाभहोय । पूर्वपक्षी-नहीं परंतु हमको तो यही सिखा