Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ६ ) . भावोंहीका फल होता है क्योंकिभावोंका फल भी कथचित् पूर्वोक्त यथा तथ्य अर्थ में ही होता है। .. (९)पूर्वपक्षी-यह तो सबठीकहै परंतु जोअन जान लोक कुछ ज्ञाननहीं जानते उनको मंदिर में जानेका आलंबन होजाता है, इसी कारण मंदिर मूर्ति बनवाये गये हैं। __उत्तर पक्षी-यह तो फिर तुम अपने मन के
राजा हो चाहे कैसे ही मन को लडालो परन्तु सिद्धान्त तो नहीं क्योंकि तुम प्रमाण कर चुके हो कि अनजानों के वास्ते मंदर मूर्तियें हैं, सो ठीक है क्योंकि चाणक्य नीति दर्पणमें भी यों ही लिखा है अध्याय चार, श्लोक १९में अग्निर्देवो द्विजातीनां, मुनीनां हृदिदैवतम्। प्रमाति स्वल्पबुद्धीनां, सर्वत्र समदर्शिनाम् ॥